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आदर्श जीवन।
लाहोर छावनी और शहरमें पाँच मीलका अन्तर है । लाहोर छावनीका दूसरा नाम ही मियाँमीरकी छावनी है । अगले दिन आप शहरमें पधारे । श्रीजिनमंदिरके पास ही वहाँ एक पंचायती मकान ( उपाश्रय ) है । उसीमें आप ठहरे । एक महीना यहीं बिताया । आजतक लाहोरमें एक भी मुनिराज इतने समयतक नहीं ठहरे थे । कारण वहाँ पुजेरे श्रावकोंके केवल एक दो ही मकान उस वक्त थे । यह समा चार मिलने पर कि, वल्लभविजयजी आदि लाहोरमें ठहरे हुए हैं १०८ श्रीचरित्रविजयजी महाराज, और १०८ श्रीउद्योत विजयजी महाराज आदि वृद्ध साधुओंके पत्र इस आशयके आने लगे कि, लाहोरमें पुजेरे (मंदिर आम्नायवाले) हीरालाल मुन्हानी वगैरहके एक दो ही घर हैं, फिर तुम इतने दिन तक वहाँ क्यों ठहरे हो ? साथके साधु तो सभी सुखसातामें हैं न?
उत्तरमें आपने लिखा,-"सभी मुनि यहाँ सुखसातामें हैं। यहाँ रहनेमें कुछ लाभ दिखाई देता है इसी लिए हम लोग यहाँ ठहरे हुए हैं । हमेशा व्याख्यान होता है । व्याख्यान सुननेके लिए जौहरियोंके परिवारमेंसे बाबू नत्थूमल, बाबू मोतीलाल, लाला बुलाकीमल आदि कई भाई और बहनें आते हैं । संभव है इस समयका बोया हुआ बीन भविष्यमें फलदायी हो । दिल्लीवाले लाला महताबरायजीके परिवारमेंसे कई यहाँ सरकारी नौकर हैं। वे और उनके घरकी सन्नारि
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