________________
१३०
आदर्श जीवन।
___ अमृतसरका चौमासा समाप्तकर आप २१ दिसंबर सन् १९०१ ईस्वीको लाहोर पधारे आपके साथ मुनि श्रीहीरविजयजी महाराज और मुनि श्रीसुमतिविजयजी महाराज थे। लाहोरमें आपने मूयगडांग सूत्रका व्याख्यान प्रारंभ किया था । आप सं० १९५५ में जिस उपाश्रयमें ठहरे थे, इस बार भी उसी पंचायती उपाश्रयमें ठहरे थे।
यहाँ ' आत्मानंद जैन सभा पंजाब' का दूसरा वार्षिकोत्सव आपकी उपस्थितिमें हुआ। आपने उपदेश देकर यहाँ उन सभी प्रस्तावोंको पुनः पास करवाया जो अमृतसरमें हो चुके थे। तीसरे प्रस्तावमें पाँच और दो रुपयेकी जगह एकसे लेकर पाँच रुपये तक इच्छानुसार निकालना लिखा है । चौथे प्रस्तावमें विशेष फर्क है इसलिए उसकी पूरी नकल यहाँ दी जाती है।
(४)-" विवाहके समय श्रीजिनमंदिरजीमें जो रकम बराती चढ़ावें सो ' श्रीजिनमंदिरजी ' तथा ' श्रीआत्मानंद जैन पाठशाला पंजाब, के नामसे (चढ़ावें और ) जमा करें। खास गुजराँवालाके वास्ते श्रीसंघ पंजाबकी यह सम्मति है कि, जो रकम बराती चढ़ावें उसको (१) श्रीजिनमंदिरजी (२) श्रीआत्मानंद जैन पाठशाला पंजाब और (३) श्री १००८ श्रीगुरुदेवजी महाराजकी समाधिके नामसे चढ़ावें और शहर गुजराँवालाका श्रीसंघ उसको बराबर तीन हिस्सोंमें 'तीनोंहीके नामसे जमा करे ।"
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org