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आदर्श जीवन ।
जीरासे विहार करके आप मालेरकोटला पधारे । वहाँ कई दिनों तक आप भक्तोंको जिनवचनामृतका पान कराते रहे । वहाँ से विहार करके ग्रामानुग्राम विचरते, जैन धर्मकी प्रभावना करते और उपदेशामृतकी वर्षा करते हुए आप अंबाला पधारे और सं १९६० का सत्रहवाँ चातुर्मास आपने अंबालेहीमें किया । यहाँ आठ और नौ अगस्त सन् १९०३ को आत्मानंद जैन सभा पंजाबका जलसा हुआ था । सभापतिका स्थान आपने सुशोभित किया था ।
होशियारपुर के सरकारी गेजेटियर में किसी लेखकने -जिसको जैन धर्म और उसके पालनेवालोंका कुछ परिचय नहीं था - भावड़ोकी यानी ओसवालोंकी शूद्रोंमें गिनती कर डाली थी । इस भूलको सुधरवाने के लिए आपने उपदेश देकर एक कमेटी बनवाई । इस कमेटी में बाबू लेखराम आदि कई सज्जन थे । कमेटीने प्रयत्न करके सफलता प्राप्त कर ली ।
उसी वर्ष बंबई में श्वेताम्बर जैन कॉन्फरन्स होनेवाली थी । आपने कॉन्फरन्समें भाग लेनेका उपदेश दिया। इस पर पंजाबके प्रत्येक शहरमेंसे प्रतिनिधि भेजना स्थिर हुआ । तबसे प्रत्येक कॉन्फरन्समें पंजाब के प्रतिनिधि जाते रहे हैं ।
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इस चौमासेमें अंबालाशहरमें एक पाठशाला खोली गई । उसका नाम ' श्री आत्मानंद जैन पाठशाला' रक्खा गया । वह धीरे धीरे उन्नत होकर अब हाई स्कूल बन गई है । आपके उपदेश से यहाँ और भी अनेक कार्य हुए थे ।
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