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आदर्श जीवन।
बताइए। वे पाठ न बता सकेंगे; क्योंकि सूत्र में वह पाठ नहीं है । बस लोगोंसे कह देना कि, इनकी सारी बातें इसी तरह मनगढंत हैं। सच्चा वीतरागका धर्म तो स्थानकवासी ही पालते हैं। लोग तत्काल ही स्थानकवासी धर्मके हिमायती हो जायँगे।"
सुर्जनमल उछल पड़ा । मानों उसे चिन्तामणि रत्न मिल गया है ; उसका मन आकाशमें महल बनाने लगा। उसने अपने कल्पना चक्षुसे देखा कि, जो वल्लभविजयजी श्वेतांबर सम्प्रदायके स्तंभ थे वे ही अब स्थानकवासी संप्रदायके स्तंभ हो गये हैं। जिनके कारण श्वेतांबरोंका समस्त भारतमें जयजय कार हो रहा था उन्हींके कारण अब स्थानकवासियोंकी जय पताका उड़ रही है । भोले श्रावकको क्या खबर थी कि थोड़ी ही देरमें यह महल-यह सुखस्वम नष्ट भ्रष्ट हो जायगा । __ हमारे चरित्रनायक व्याख्यान दे रहे थे। मुसलमान, ब्राह्मण, क्षत्री आदि सभी तरहके लोग उपदेश सुन रहे थे और अपनी शंकाएँ मिटा रहे थे । उसी समय लाला सुर्जनमल कई स्थानकवासियोंके साथ वहाँ पहुँचे उस समय वे इतना हर्षबावले हो रहे थे कि उन्हें सभ्यताका भी खयाल न रहा । बात कैसे शुरू करनी चाहिए इसका ज्ञान तो हो ही कैसे सकता था ? उन्होंने झटसे मुखधनुषकी टंकार कर पूज सोहनलालजीका दिया हुआ ब्रह्मास्त्र छोड़ा। __ श्रोता चौंके । उन्होंने सुर्जनमलकी तरफ देखा । व्याख्यानके रसपानमें विघ्न डालनेवालेपर उन्हें तरस आया । हमारे
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