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आदर्श जीवन ।
बख्शी०-“ यदि नहीं है तब तो आपकी जीत निश्चित ही है। आपको यह अवसर हाथसे न खोना चाहिए।"
सोह.---" हम अपना स्थान छोड़ कर कहीं नहीं जाते।"
बख्शी०--"धर्मकार्यमें जाना बुरा नहीं है और वह तो ऐसी जगह है जहाँ किसी तरहकी रोक नहीं हो सकती । पंडितोंके सामने सत्यासत्यका निर्णय हो जायगा।" ।
सोह०-" पंडित क्या समझते हैं वे तो टुकड़ गदाई हैं।"
साथमें गये हुए पंडितोंके अंदरसे एक क्रुद्ध होकर बोला:“ यदि पंडित नहीं समझते हैं तो क्या गधे चरानेवाले कुम्हार समझते हैं ? कहाँ मुनि वल्लभाविजयजी विद्या और विद्वानोंका सम्मान करनेवाले और कहाँ तुम !"
सभी उठ कर चले गये।
कटरेमें सभा होना निश्चित हुआ था । सभास्थान जनतासे खचा खच भर गया । दिनके ठीक चार बजे हमारे चरित्रनायक सभामें, अपने कई साधुओं सहित पहुँचे । आपने जैन धर्मका महत्त्व समझाकर श्वेताम्बरों और स्थानकवासियोंमें क्या फर्क है सो समझाया । स्थानकवासियोंके दिल दहले । उन्हें अपने पंथकी नौका डगमगाती हुई दिखाई दी। उनमेंसे कई पूज सोहनलालजीके पास पहुंचे और दुःखी स्वरमें बोले:" महाराज अगर आज आप शास्त्रार्थमें न चलेंगे तो हम कहीं मुँह दिखाने लायक भी न रहेंगे।"
यद्यपि पूज सोहनलालजी पहले कह चुके थे कि हम
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