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________________ १३८ आदर्श जीवन । बख्शी०-“ यदि नहीं है तब तो आपकी जीत निश्चित ही है। आपको यह अवसर हाथसे न खोना चाहिए।" सोह.---" हम अपना स्थान छोड़ कर कहीं नहीं जाते।" बख्शी०--"धर्मकार्यमें जाना बुरा नहीं है और वह तो ऐसी जगह है जहाँ किसी तरहकी रोक नहीं हो सकती । पंडितोंके सामने सत्यासत्यका निर्णय हो जायगा।" । सोह०-" पंडित क्या समझते हैं वे तो टुकड़ गदाई हैं।" साथमें गये हुए पंडितोंके अंदरसे एक क्रुद्ध होकर बोला:“ यदि पंडित नहीं समझते हैं तो क्या गधे चरानेवाले कुम्हार समझते हैं ? कहाँ मुनि वल्लभाविजयजी विद्या और विद्वानोंका सम्मान करनेवाले और कहाँ तुम !" सभी उठ कर चले गये। कटरेमें सभा होना निश्चित हुआ था । सभास्थान जनतासे खचा खच भर गया । दिनके ठीक चार बजे हमारे चरित्रनायक सभामें, अपने कई साधुओं सहित पहुँचे । आपने जैन धर्मका महत्त्व समझाकर श्वेताम्बरों और स्थानकवासियोंमें क्या फर्क है सो समझाया । स्थानकवासियोंके दिल दहले । उन्हें अपने पंथकी नौका डगमगाती हुई दिखाई दी। उनमेंसे कई पूज सोहनलालजीके पास पहुंचे और दुःखी स्वरमें बोले:" महाराज अगर आज आप शास्त्रार्थमें न चलेंगे तो हम कहीं मुँह दिखाने लायक भी न रहेंगे।" यद्यपि पूज सोहनलालजी पहले कह चुके थे कि हम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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