SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 158
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आदर्श जीवन १३७ चरित्रनायककी स्थिति निराली थी । वे सुर्जनमलकी तरफ देखकर मुस्कुराये और बोले:-" भावी श्रावक ! एक बड़ी सभा करो। सभी धर्मके बड़े बड़े विद्वानोंको बुलाओ ! उसीमें हम वह पाठ दिखायँगे । यहाँ दिखानेसे कोई लाभ नहीं है। " ___ सभी श्रोताओंने कहाः-" ऐसा ही होना चाहिए । जनतापब्लिक-को भी मालूम हो जायगा कि, कौनसा फिरका वीतरागका सच्चा उपासक है।" सुर्जनमल ऐसी आशा करके नहीं आया था। उसका हवाई किला ध्वंस हो गया। उसे दुःख हुआ । “ऐसा ही सही" कह कर वह चला गया। __ शास्त्रार्थका दिन निश्चित हुआ। सारे शहरमें धूम मच गई। आसपासके अनेक लोग शास्त्रार्थ सुनने जमा होने लगे। शास्त्रार्थके एक दिन पहले शहरके मुखिया लाला पंजाबराय, लाला सीताराम, आदि कई पांडतों और यति बख्शीऋषिजीके सहित पूज सोहनलालजीके पास गये । अनेक बातें होती रहीं । शास्त्रार्थकी बात छिड़ी। बख्शीऋषिजी बोले:-"महाराज आप शास्त्रार्थमें तो कल जावेंहीगे ?" ___ सोहनलालजीने वही बात दुहराई जो सुर्जनमलसे कही थी। बख्शी०-" मगर वल्लभविजयजी तो पाठ दिखानेके लिये तैयार हैं।" सोह०-" नहीं जी ! यह पाठ मूत्रमें है ही कहाँ ?" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy