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आदर्श जीवन |
कहा । करमचंदजीने अंगूठे नीचे उस पंक्तिको छुपा दिया जिसमें पूजा करनेकी बात लिखी थी । यतिजीने अंगूठा हटवाकर वह पंक्ति स्पष्ट अक्षरोंमे पढ़कर सुनाई । स्थानकवासी साधु और श्रावकोंको बड़ा बुरा लगा । लोगोंने भगवान महावीरकी जय ! आत्मारामजी महाराजकी जय ! वल्लभविजयजी महाराजकी जय ! ध्वनि से सभामंडपको गुँजा दिया । स्थानकवासी साधु तथा श्रावक चुपचाप अपने पूजजीके पास चले गये । पब्लिकने जुलूसके साथ हमारे चरित्रनायकको उपाश्रयमें पहुँचायां ।
दूसरे दिन सूर्यग्रहण था । ग्रहणमें अन्नोदक ग्रहण करना प्रायः हिन्दु तथा जैन सभी बुरा समझते हैं; कोई करता भी नहीं है । मगर पूज सोहनलालजीने उस दिन आहारपानी मँगवाया, किया और पटियाले चले गये इसलिए वे लोगोंकी दृष्टि में और भी ज्यादा गिर गये ।
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हमारे चरित्रनायकने दो चार दिन और वहीं ठहर रियास्त नाभाकी तरफ विहार किया; नाभे पहुँचे । पूज सोहनलालजी भी पटियाले विहार कर वहीं पहुँच गये थे ।
एक दिन हमारे चरित्रनायक जब व्याख्यान समाप्त कर साधारणतया वार्तालाप कर रहे थे तब एक व्यक्तिने निवेदन किया: - " कृपानिधान ! पूज सोहनलालजी और उनके शिष्य जगह जगह कहते फिरते हैं कि, श्वेतांवरोंमें कोई ऐसा नहीं है जो हमारे साथ शास्त्रार्थ करे ।"
१ विशेष वृत्तान्त और वहाँ की उपस्थित जनता - जिसमें अनेक विद्वान भी थेका फैसला उत्तरार्द्ध में देखिए ।
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