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आदर्श जीवन ।
पाँचवें प्रस्ताव में पर्युषणोंका ज्ञानसंबंधी चढ़ावा ' श्रीआत्मानंद जैन पाठशाला पंजाब' हीमें देनेकी बात थी वह बदल दी गई और उसकी जगह यह स्थिर हुआ कि चढ़ावेका आधा हिस्सा 'पाठशाला पंजाब' में और आधा अपने शहरके " ज्ञानखाते में दिया जाय ।
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एक महीने तक लाहोर निवासियोंका उपकार कर ता. १९ जनवरी सन् १९०२ को आपने वहाँसे विहार किया । मुनि महाराज श्रीहीरविजयजी और मुनि महाराज श्रीसुमतिविजयजी सहित आप ग्रामानुग्राम विचरते हुए बुधियाना पधारे । यहाँके श्रावक आपके आगमन से बड़े हर्षित हुए । आपके वचनामृत पानकरनेके लिए सारे ही गाँवके नरनारी सवेरे व्याख्यानमें आया करते थे ।
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garaमें एक मास तक अमृत वर्षाकी और वहाँसे विहार करके आप फाल्गुन वदी १३ सं० १९५८ को कसूर पधारे और वहाँके लोगोंको धर्म- पीयूष पिलाने लगे । आपके उपदेशसे वहाँ फाल्गुन सुदी १० को शांतिस्नात्र पूजा पढाई गई और लाला जीवनलालने 'सधर्मी वात्सल्य' किया । यह बात कसूरके लिए सबसे पहली ही थी ।
कसूरसे आप विहार कर अमृतसर और अमृतसर से जंडियाले पधारे । वहाँ सं. १९५८ के आषाढ़ वदी ५ गुरुवार ता. २६ जून सन् १९०२ ईस्वीको बड़ी धूम धामसे दो व्यक्तियोंकी दीक्षा हुई। उनका नाम विनोदविजयजी और विमलविजयजी
रक्खा गया ।
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