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आदर्श जीवन ।
www.aaivar जंडियालेसे आप चौमासा करनेके लिए पट्टी पधारे । संवत १९५९ का सोलहवाँ चौमासा आपने पट्टीहीमें किया । पट्टीमें आपके उपदेशसे स्वर्गीय आचार्य महाराजकी स्वर्गवास तिथिके दिन और संवत्सरीके दिन दुकानें बंद रखने और आरंभसे बचनेका सारे संघने नियम किया।
पट्टीसे विहार करके आप जीरा पधारे । जीरामें, आपने श्रीजैनधर्म प्रसारक सभा भावनगर द्वारा प्रकाशित 'साधुप्रतिक्रमण' नामका ग्रंथ देखा । उसमें सालमें दो बार यानी हर छठे महीने, साधुओंके लिए कायोत्सर्ग करनेका विधान कियागया था। आपने इस लेखमें एक भूल देखी और 'आत्मानंद जैन पत्रिकामें जो उस समय लाहोरसे प्रकाशित होती थी,-एक सूचना प्रकट कराई और उसके द्वारा यह सिद्ध किया कि वर्ष में एक ही बार और वह भी चैत्रके महीनेहीमें कायोत्सर्ग करनेकी शास्त्र-आज्ञाहै।अपने कथनकी पुष्टिमें आपने सामाचारी शतक और 'आवश्यक प्रतिक्रमण अध्ययन के पाठ भी दिये । इस सूचनामें आपने जामनगर निवासी पंडित हीरालाल हंसराज द्वारा लिखित 'जैनधर्मनो प्राचीन इतिहास ' नामक पुस्तकके विषयमें भी लिखा है कि, उसमें कई बातें अनुचित और गलत हैं । आपने संघसे अपील की थी कि, एक ऐसी कमेटी बनाई जावे कि, जो जैनधर्मसे संबंध रखने वाले ग्रंथोंको आद्योपान्त देख ले और जबतक वह देख कर पास न कर दे तबतक कोई ग्रंथ-एक छोटासा पेम्प्लेट भी-जैनधर्मके विषममें प्रमाणित न माना जावे ।
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