________________
१२८
आदर्श जीवन।
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
-
N
A
A
__ आप जंडियालासे विहार कर अन्यान्य गाँवोंके जीवोंको धर्मामृत पिलाते हुए अमृतसर पधारे । वहाँ पर ' आत्मानंद जैन पाठशाला पंजाब' की योजना करनेके लिए सं. १९५८ के वैशाख सुदी ११ ता० २९ अप्रेल सन् १९०१ ईस्वीको बाबाजी महाराज श्रीकुशलविजयजीके सभापतित्वमें एक सभा हुई । उसमें आपने श्रावकोंको उत्साहित करनेवाला एक छोटासा व्याख्यान दिया था । उसका श्रावकों पर बड़ा प्रभाव हुआ और उस समय जो पाँच प्रस्ताव आपकी सम्मतिसे पास किये गये उनको उपयोगी समझकर हम यहाँ उद्धृत कर देते हैं
(१) शहर जंडियालेमें प्रतिष्ठामहोत्सवके समय 'श्रीआत्मानंद जैन पाठशाला पंजाब' के लिए जो फंड श्रीसंघ पंजाबने स्थापित किया है उसमें जिन जिन शहरोंने अपने नाम चंदेमें नहीं लिखाये हैं उन शहरोंको चंदा देना चाहिए।
(२) पहली मई सन् १९०१ से प्रत्येक नगरके श्रद्धालु सेवकोंको चाहिए कि वे अपनी शक्तिके अनुसार प्रति दिन कमसे कम एक पाई इस फंडमें जरूर दें। ज्यादा इच्छानुसार दे सकते हैं। यह नियम अभी दस बरस तक के लिए किया जाता है।
(३) 'श्रीआत्मानंद जैनपाठशाला पंजाब' के लिए पुत्रके विवाह पर पाँच रुपये और पुत्रीके विवाह पर दो रुपये निकाले जाया करें। आधिक निकालनेका हरेकको अखतियार है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org