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आदर्श जीवन ।
रुपया देना स्वीकार किया । कइयोंने उसी समय नकद रुपये भी दे दिये ।
यहाँकी प्रतिष्ठा समाप्त होने पर मुनि श्रीलब्धिविजयजी और मुनि श्रीललितविजयेजीने आपकी आज्ञानुसार मारवाड़ गुजरातकी तरफ़ विहार किया ।
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१ - इनका जन्म गुजरांवाला जिलेके रहनेवाले श्रीयुत दौलतरामजीके घर हुआ था । सं. १९३७ में इनका जन्म हुआ था । इनका नाम लक्ष्मणदास था 1 इनके पुरुषा महाराजा रणजीतसिंहजीके जमाने तक बहुत बड़े जमींदार रहे थे । इनके पिता अपने इन इकलौते पुत्रको छोड़ कर परलोकवासी हो गये थे । गाँवमें लाला बूडामल भगत रहते थे । वे जातिके ओसवाल और पक्के बालब्रह्मचारी एवं जैनधर्मधारी थे । उनका और दौलतरामजीका गाढा स्नेह था । इसलिए दौलतरामजीके मरने पर उन्होंने इन्हें अपने पास रखकर जैनधर्मके रंगमें रंगना प्रारंभ किया । थोड़े ही दिनोंमें पक्के शैवका लड़का दृढ जैनधर्मधारी बन गया । इनका मन जब वैराग्यमें सन गया तब भगतजीने इन्हें गुजरांवाला में आकर हमारे चरित्र - नायकके भेट कर दिया । हमारे चरित्रनायकने ग्यारह महीने अपने पास रख, भव्य जीव समझ सं.१९५४ के वैशाख सुदी ८ के दिन नारोवालमें इन्हें दीक्षा दी । ललितविजयजी ' रक्खा । ये हमारे चरित्रनायकके द्वितीय, आपके ( हमारे चरित्रनायक के ) शब्दों में, अद्वितीय गुरुभक्त हैं । आप जैसे विद्वान हैं वैसे ही अच्छे गायक भी हैं । जिस समय आप भक्तिपूर्ण हृदयसे मंदिरजीमें पूजा पढ़ाते हैं उस समय श्रोता लोग मंत्रमुग्ध सर्पकी भाँति तल्लीन हो जाते हैं । इनके व्याख्यान भी बड़े ही प्रभावोत्पादक होते हैं । गुरुदेवकी आज्ञा, अनेक कष्ट उठाकर भी पालन करने को ये हर समय तैयार रहते हैं । ये कहा करते हैं, " गुरुमहाराजके मुझपर इतने उपकार हैं कि उनके हुक्मको पालते हुए यदि मेरा देहपात हो जाय तो भी म उनसे उऋण न होऊँ । ” सं० १९७६ में वाली ( मारवाड़ ) में गुरु महाराजके समक्ष ही इन्हें पंन्यास सोहनविजयजी महाराज ने पंन्यास पदसे विभूषित किया । इनके साथ ही मुनि श्रीउमंगविजयजी महाराज और मुनि श्रीविद्याविजयजी महाराज भी पंन्यास पदसे विभूषित किये गये थे ।
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नाम
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