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आदर्श जीवन ।
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था,-" तुम चिन्ता क्यों करते हो ? मैं तुम्हें वल्लभके भरोसे छोड़ जाता हूँ। वह मेरी कमी पूरी करेगा।"
आपने भक्तिभावसे स्वर्गीय गुरुचरणोंमें प्रणाम कर कहा:" वे बड़े थे । उनकी आज्ञाका पालन करनेमें मैं कभी आगा पीछा नहीं करता । मैं तो क्या मेरे जैसे हजार वल्लभविजय भी उनकी कमीको पूरा न कर सकेंगे । कहाँ वे शासन-सूर्य और कहाँ मैं टिम टिमाता हुआ दीपक ? सूर्यके अभावमें चिराग भी कुछ उपयोगी हो ही जाता है, उसी प्रकार मैं भी आपको धर्मकार्यमें लगाये रखनेके काममें उपयोगी हो सकता हूँ। मगर इतनेहीसे मैं अपने आपको गुरू-गद्दीपर बैठनेके योग्य नहीं समझता । गुरु महाराजके और भी शिष्य हैं। कई मुझसे दीक्षा पर्यायमें बड़े हैं। उनमेंसे आप इस पदके लिए किन्हींको चुन लीजिए । इस तरह मेरा विरोध होने पर भी यदि आप लोगोंका आग्रह ही है तो समस्त मुनिराजोंसे सम्मति ले लीजिए। यदि सबकी राय होगी तो मैं विचार करूँगा । उस वक्त लाला गंगारामजीने कहा;-“मैं मारवाड़ गुजरात आदिमें जाकर प्रायः सब साधुओंसे सम्मति ले आया हूँ। सबने प्रसनताके साथ कहा है कि, आप ही इस पदको सुशोभित करनेके योग्य है। ___ "हाँ एक कान्तिविजयजी महाराजने दूसरी ही सम्मति दी है । उन्होंने कहा है कि, वल्लभविजयजी इस पदके सर्वथा योग्य हैं । इसका मैं विरोध नहीं करता । जैसे वे अद्वितीयः
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