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आदर्श जीवन ।
रातमें गाँव के दूसरे लोगोंके साथ मिलकर मुसाफिरोंका सर्वस्व छीन लेता है । अगर प्राण लेने पड़ते हैं तो इसमें भी वह आगा पीछा नहीं करता । यद्यपि अपने पतिकी बुराई करना स्त्रीके लिए पाप है तथापि मैंने आपके सामने की है । इसके दो कारण हैं, एक तो यह कि, मेरे पति साधुको दुख देने से जो पाप लगेगा, उससे बचेंगे और दूसरा साधुकी रक्षा होगी।"
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आपके साथ तीन साधु थे और ७, ८ श्रावक । आपने उनसे मशवरा किया । इतनेहीमें वहाँ एक वृद्ध सिक्ख आ गया । उसने कहा : – “ महाराज ! मैं आपको यही सम्मति दूँगा कि आप यहाँ से चले जाइए । "
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श्रावक बोले :- " महाराज ! यदि आप चल सकते हों तो हमारी कोई हानि नहीं है; भले चले चलिए, अन्यथा यहीं रहिए । चोर भी तो इन्सान हैं । हम देख लेंगे । "
आप बोले :- " लाला तुम्हारा कहना ठीक है । मगर मैं विना प्रयोजन किसीके प्राण खतरे में डालना नहीं चाहता। अगर हम सब साधु ही होते तो हमें कोई चिन्ता न थी । हमारे पास चोर आकर क्या ले जाते ? मगर आप लोग हैं इसलिए मैं यह जोखम उठाना ठीक नहीं समझता । "
आखिरकार खरे तड़के में आप वहाँसे रवाना हो गये और आठ कोसकी कठिन मुसाफिरी पैदल, नंगे पैर, तै करके संध्याको मियाँमीरकी छावनीमें पहुँचे ।
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