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आदर्श जीवन ।
उत्कण्ठासे आपकी प्रतीक्षा कर रहे थे ।आपके वहाँ पहुँचने पर बड़ी धूमके साथ आपका स्वागत किया गया । व्याख्यानमें श्रावकोके सिवा कई सनातन धर्म और सिक्ख भी आया करते थे। दुपहरके समय भी कई ब्राह्मण आपके पास आते थे और धर्मचर्चा कर प्रसन्न होते थे। एक महीने तक आप वहाँ बिराजे ।
जम्मूसे आपने सनखतरेकी तरफ विहार किया। रास्तेमें विशनाह नामक गाँवमें रात रहे । आप जिस धर्मशालामें ठहरे थे उसमें एक कथाभटजी कथा वाँचा करते थे । शामको कथा बाँच कर उठे । उन्हें मालूम हुआ कि, धर्मशालामें कोई ठहरा है । उन्होंने नौकरको पुकारा और पूछा:-"धर्मशालामें कौन ठहरा है ? " नौकर ने उत्तर दिया कि साधु ठहरे हैं" साधुका नाम सुनते ही भटजी गर्ज कर बोले:--"तूने साधुको किसके हुक्मसे ठहराया है। " फिर उन्होंने आकर असभ्यताके साथ पूछा:--" तुम कौनसे साधु हो ?" - आपने शांत भावसे मधुर शब्दोंमें कहा:-" पंडितजी बैठिए ! आप जानते हैं कि अगले जमानेमें वनोंमें जाकर गृहस्थ साधुओंकी सेवा किया करते थे । आज नगरमें आये हुए साधुओंको सेवा करना तो दूर रहा, उन्हें रात बितानेके लिए ढाई हाथ जमीन भी गृहस्थ न देंगे ? अपने घरकी जमीन दूर रही मुसाफिरोंके लिए ही जो स्थान है उस स्थानमें भी,एक मुसाफ़िर समझकर भी, क्या ढाई हाथ जमीन साधुको देना गृहस्थके लिए दुखदायी है ? आप तो पंडित हैं। धर्मशास्त्रोंके ज्ञाता
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