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आदर्श जीवन ।
बटाया था। जीराके चौमासेमें आचार्यश्रीने ' तत्वनिर्णयप्रासाद' नामका ग्रंथ लिखना प्रारंभ किया था, यहीं आपने उसकी प्रेसकॉपी करनी शुरू की थी।
पट्टीसे विहार करके आप अंबाला पधारे और सं० १९५२ का नवाँ चौमासा आपने आचार्यश्रीके साथ यहीं किया। यही आचार्यश्रीकी दूसरी आँखका मोतिया निकलवाया गया था इसलिए आप नवीन ग्रंथका अध्ययन न कर सके। हाँ तत्वनिर्णयप्रासाद ग्रंथका उल्लेखन होता रहा । सं० १९५२ के मार्गशीर्ष सुदी १५ के दिन अंबाले शहरमें श्रीसुपार्श्वनाथ स्वामीकी प्रतिष्ठा हुई।
अंबालेसे विहार करके लुधियानाआदि स्थानों में होते हुए आप आचार्य महाराजके साथ सनखतरा पधारे । सनखतरेका मंदिर बड़ा ही सुंदर बना हुआ है । जब आचार्यश्रीके साथ आप दर्शनार्थ मंदिरके जीनपर चढ़ रहे थे तब आचार्यश्रीने आपको फर्मायाः-" अरे वल्लभ ! क्या हम शत्रुजयपर चढ़
आपने निवेदन किया:-" हाँ साहब ! यह शत्रुजय तीर्थपर विराजमान मूलनायक श्रीऋषभदेवजीकी, ट्रॅककासा बना हुआ साक्षात् शत्रुजय ही मालूम देता है । " ___यहाँपर दो सौ पचहत्तर जिनबिंबोंकी अंजनशलाका हुई थी इसमें आप स्वर्गीय आचार्य महाराजकी दाहिनी भुजाके समान थे।
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