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आदर्श जीवन ।
जेठ वदी ६ सं० १९५३ को सनखतरासे विहार करके पसरूर, छछरों वाली, सतराह, सेराँवाली बड़ाला होते हुए आचार्य महाराजके साथ आप गुजराँवाला पधारे ।
बड़ाला गाँवसे ही आचार्यश्रीको श्वासका रोग बढ़ गया था, मगर आचार्यश्री ने कभी उसकी परवाह न की । आपने अन्यान्य साधु महात्माओं सहित आचार्य महाराज से औषधोपचार करानेकी प्रार्थना की मगर आचार्य महाराज यह कह कर बात टाल देते थे कि ऐसे छोटे छोटे रोगोंका क्या इलाज कराना । यद्यपि होनी कभी टलनेवाली न थी; मगर हमारे चरित्रनायकको आजतक इस बातका अफ्सोस है कि, आपने आचार्यश्रीका, साग्रह निवेदन करके, इलाज क्यों न कराया ।
सं० १९५३ जेठ सुदी सप्तमी मंगलवारकी रात थी । आचार्यश्री और सभी साधु प्रतिक्रमण, संथारा, पौरसी आदि नित्य क्रियाएँ करके आराम करने लगे थे | घड़ीने बारह बजाये उस समय आचार्यश्रीको दस्तकी हाजत हुई । वे उठ बैठे और दिशा गये आप आचार्यश्री के निकट ही सो 'रहे थे । आपकी नींद खुल गई; उठ बैठे । आचार्यश्री हाजतरफा करके आसन पर बैठें 'अर्हन' 'अर्हन्' बोलरहे थे, इतने हीमें दम उलट गया | सभी साधुओंकी नींद टूट गई । आप उठकर आचार्यश्री के चरणोंमे बैठे । आचर्यश्री उस समय बड़ी कठिनता से बोल सकते थे । उनके मुखसे केवल 'अर्हन्' शब्द
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