________________
८०
आदर्श जीवन ।
श्रीकुशलविजयजी महाराज (३) श्रीहीरविजयजी महाराज ( ४ ) श्रीकमलविजयजी महाराज (५) श्रीसुमतिविजयजी महाराज (६) हमारे चरित्रनायक (७) श्रीलब्धिविजयजी महाराज (८) श्रीशुभविजयजी तपस्वी और (९) श्रीमोती विजयजी महाराज
इस चौमासेमें हमारे चरित्रनायकने ' चंद्रप्रभा' व्याकरण पंडित उत्तमचंद्रजीके पाससे पढ़ना शुरु किया । साथ ही उनसे कुछ ज्योतिष भी पढ़ते रहे । सहाध्यायी मुनि श्रीकमलविजयजी महाराजके अनुग्रहसे श्रीआवश्यक मूत्रका अध्ययन भी आचार्य श्रीकेचरणोंमें होता रहा।
वलाद जिला अहमदाबादके रईस श्रीयुत डायाभाई जो करीब नौ महीनेसे दीक्षा ग्रहण करने की इच्छासे आये हुए थे उन्हें सं० १९४८ के मार्गशीर्ष वदी ५ को आचार्यश्रीने दीक्षा दी। विवेकविजयजी नाम रक्खा । हमारे चरित्रनायकके यही पहले शिष्य हुए।
फिर पट्टीसे विहारकर आचार्यश्री सपरिवार जीरा पधारे। वहाँ सं० १९४८ के मार्गशीर्ष शुक्ला ११ के दिन श्रीचिन्तामाण पार्श्वनाथजीकी प्रतिष्ठा तथा भरूचनिवासी परम श्रद्धालु, परम भक्त धर्मात्मा सेठ अनूपचंद मलूकचंद कई स्फटिकके जिनबिंब लाये थे उनकी अंजनशलाका कराई। आचार्य महाराज पहलसे ही यह सोच चुके थे कि, वल्लभ विजयजी ही पंजाबकी सारसम्भाल लेंगे इसलिए इसको हरेक
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org