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आदर्श जीवन ।
अंबालासे विहारकर आप लुधियाना होते हुए जलंधर शहरमें पधारे । आचार्यश्री होशियारपुरसे विहार कर वहीं विराजे हुए थे। आपने जाकर आचार्यश्रीके चरणोंमें सिर रक्खा । आचार्यश्रीने मुस्कुराकर पूछा:-" पंडित हो आया ?"
आपने हाथ जोड़कर नम्रतापूर्वक अर्ज की,-" भूल सुधार आया, कल्पवृक्ष छोड़कर भ्रमसे अन्यत्र मनोवांछित फल पानेकी इच्छा करता था उस भ्रमको मिटा आया ।" __ आचार्यश्री जलंधरसे विहारकर वेरोवाल, जंडियालागुरु होते हुए अमृतसर पधारे । वेरोवालमें बंबईके श्रीसंघकी मार्फत चिकागोकी पार्लियामेंटका आमंत्रणपत्र । सार्वधर्म परिषद' में शामिल होनके लिए मिला । साधुधर्मके कारण आचार्यश्री तो वहाँ जा नहीं सकते थे, इसलिए उन्होंने बंबईसे वीरचंद राघवजी गाँधीको बुलाया और उन्हें एक निबंध उस परिषदमें पढ़नेके लिए लिख दिया। वह निबंध 'चिकागो प्रश्नोत्तर' के नामसे प्रकाशित हो चुका है । आचार्यश्रीने पेन्सिलसे रफ़ लिख दिया था। उसकी साफ नकल हमारे चरित्रनायकने की थी। ___ आचार्यश्री अमृतसरसे विहारकर जंडियालागुरु पधारे । सं १९५० का चौमासा यहीं किया । आयार्यश्रीने व्याख्यानमें श्रीसूत्रकृतांगका व्याख्यान इसलिए रक्खा था कि हमारे चरित्रनायकको भी उसकी वाचना मिलती रहे ।
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