________________
आदर्श जीवन ।
-
नायकका सं० १९५१ का आठवाँ चौमासा जीरा जिला फिरोजपुरमें हुआ।
चौमासा समाप्त होते ही आचार्य श्री जीरासे विहार करना चाहते थे क्योंकि पट्टीमें पट्टीके मंदिरकी प्रतिष्ठा करवानी थी, परन्तु श्रीवीरविजयजी महाराज और श्रीकांतिविजयजी महाराजका-जिन्होंने पट्टीमें चौमासा किया. था-पत्र आया कि आप अभी जीरासे विहार न करें तो उत्तम हो; क्योंकि हम आपकी पदधृलि मस्तक पर चढ़ाकर बीकानेरकी तरफ जानेका इरादा रखते हैं। ___ आचार्यश्री जीराहीमें विराजमान रहे । कुछ दिनोंके बाद श्रीवीरविजयजी महाराज और श्रीकांतिविजयजी महाराजने अपने शिष्यों सहित आकर आचार्यश्रीके दर्शन कर अपनेको कृतार्थ किया।
इस बार आचार्यश्रीकी हमारे चरित्रनायक पर अधिक कृपा देखकर दोनों मुनिराजोंके नेत्रों में हर्षाश्रु आगये । उन्हें इस बातकी प्रसन्नता ही नहीं बल्के उचित अभिमान भी था कि, उनका एक गुजराती भाई पंजाबका प्यारा बन रहा है । श्रीकांतिविजयजी महाराजको और भी अधिक प्रसन्नता इस लिए थी कि, जो मुनि पंजाबके और खासकर आचार्य श्रीके प्रियपात्र हो रहे हैं वे उनके स्वप्रान्तके ही नहीं बल्के स्वनगरके भी हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org