________________
आदर्श जीवन ।
विजयजी, इन छः साधुओंको छेदोपस्थापनीय योगोहन करानेकी क्रिया शुरू की ।
९४
आचार्यश्री प्रायः सब क्रियाएँ हमारे चरित्रनायकके हाथसे कराते थे सायंकालकी क्रिया तो समाप्तितक सदा हमारे चरित्रनायकने ही कराई थी ।
1
इसके कुछ दिन बाद आचार्यश्री जंडियालासे विहार कर पट्टी पधारे । यहाँ श्रीदानविजयजी आदि योगोद्वाही पाँचों मुनियोंको बड़ी दीक्षा दी गई । इसकी सारी क्रिया आचार्यश्रीने हमारे चरित्रनायकके हाथोंहीसे कराई थी ।
पट्टीसे विहार करके श्रीआचार्य महाराज जीरा पधारे । शहरमें बड़ा उत्साह फैला । बड़े समारोह के साथ आचार्यश्रीका नगर प्रवेश हुआ । श्रावकोंकी प्रार्थना और वहाँके लोगोंकी धर्मजिज्ञासाको देखकर आचार्यश्रीने सं० १९५१ का चौमासा वहीं किया । हकीम हरदयालजी, खलीफा - मास्टर माघी रामजी, शिब्बूमलजी आदि कई भव्यजीव धर्मकी बारीक बातों और तार्किक दलीलोंको अच्छी तरह समझ सकते थे इसलिए उनके आग्रहसे आचार्यश्रीने व्याख्यानमें गणधर बाद वाँचना प्रारंभ किया । हमारे चरित्र नायकको भी दूसरी बार इसको सुननेका लाभ मिला । इस चौमासेमें आचार्यश्रीने आपको ' यतिजीत कल्प ' आदि कुछ छेद ग्रंथोंका अध्ययन भी कराया । इस तरह हमारे चरित्र
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org