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आदर्श जीवन।
मगर उधर अधिक समय न लगाना । यथा साध्य शीघ्र ही हमसे आ मिलना।"
आप आचार्यश्रीकी आज्ञा लेकर मियानीसे रवाना हुए और जलंधर, लुधियानादि शहरोंमें होते हुए अंबाले पधारे। जबसे आपने अमृतसरसे विहार किया तभीसे सारे पंजाबमें यह खबर फैल गई थी कि, वल्लभविजयजी महाराज गुजरात जाने वाले हैं । इसलिए अमृतसर, होशियारपुर, गुजराँवालादि स्थानोंके श्रीसंघोंके पत्र अंबालेमें श्रीसंघपर और खास खास श्रावकोंके पास भी आये । उनका आशय यह था, कि जैसे हो सके वैसे मुनि श्रीवल्लभविजयजीको अंबालेसे आगे मत जाने देना । कमसे कम इस चौमासेतक उन्हें वहीं रोक लेना। इतनेमें आचार्यश्रीसे अर्ज करके उनके गुजरातमें जानेकी मनाई करवा देंगे। तदनुसार अंबालेके श्रीसंघने आपसे थोड़े दिन वहाँ ठहरनेकी प्रार्थना की। दैवयोग ! स्पर्शना प्रबल ! ज्ञानीका देखा कभी अन्यथा नहीं होता । आपके साथमें आपके बड़े गुरुभाई श्रीराजविजयजी महाराज थे। उन्हें बुखार आने लग गया। करीब एक महीनेसे भी अधिक समयतक बुखारने पीछा नहीं छोड़ा । चौमासा पासमें आ रहा था, तोभी आपने स्थिर कर रक्खा था कि, यदि आषाढ़ सुदी १ तक भी ये चलने लायक हो जायँगे तो आठ दिनमें हम दिल्ली जा पहुँचेंगे।
अंबालाके श्रीसंघने आचार्यश्रीके चरणोंमें एक प्रार्थनापत्र
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