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आदर्श जीवन।
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आदमी जाकर आचार्यश्रीके पास सब बातें स्थिर कर आते हैं। आप ठहर जाइए।"
मगर आपको ज्ञान प्राप्त करनेकी लगन लग रही थी। आप कब सुननेवाले थे । बोले:-" महाराज साहबने आज्ञा कर दी है। अब कोई बात स्थिर करनेके लिए न रही।"
श्रीसंघने नम्रता पूर्वक कहा:-" हम आपसे विवाद करना नहीं चाहते मगर हम इतना कहे विना नहीं रह सकते कि आपने आचार्यश्रीके अभिप्रायको नहीं समझा । आचार्यश्रीने स्पष्ट लिखा है कि,-" यदि जानेकी इच्छा होतो जाओ।" इसका साफ् मतलब यह होता है कि, आश्चर्यश्री अपनी इच्छासे आपको नहीं भेजते । यदि वे भेजना चाहते तो आपकी इच्छाकी बात अंदर नलिख कर स्पष्ट लिखते कि,-"तुम अमुक अमुक साधुको साथ लेकर पालीताने चले जाओ।" फिर पत्रमें लिखा है,-" पाँच बरसमें जब चाहो तभी आजाना।" इसका अभिप्राय यह है कि, तुम्हारी इच्छामें हम वाधा डालना नहीं चाहते; परन्तु यथा साध्य जितना शीघ्र हो सके तुम हमारे पास आजाना । पाँच सालसे ज्यादा तो किसी तरहसे भी दूर न रहना । " कहीं दोनों तरफसे न जाओ" यह वाक्य स्पष्ट बताता है कि, आचार्यश्रीकी इच्छा आपको उधर भेजनेकी बिलकुल नहीं है । इतना ही क्यों ? श्रीजी इस वाक्यको लिखकर स्पष्टतया अपना हृद्त बता रहे हैं कि, तुम न जाओ । यदि जाओगे तो दोनों तरफ़से रहोगे । न
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