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आदर्श जीवन ।
जंडियाला गुरु ( पंजाब ) के वैद्य सुखदयालजी भी आचार्यश्रीके आदेशसे वहाँ आये थे । उनकी आयु करीब सत्तर वर्षके होगी । उन्होंने भी यही सलाह दी बल्के यहाँ तक कहा कि, " मुझे गुरु महाराज श्री १००८ श्रीमद्विजयानंद सूरि महाराजकी यह आज्ञा है कि:-यदि तुम्हारे ध्यानमें यह बात बैठ जाय कि साधु अब बचेंगे नहीं तो तुम तत्काल ही पासके साधुओंको सूचित कर दो, ताके वे लोग अपनी धार्मिक क्रियाओंका प्रबंध कर लें । " फिर उन्होंने हमारे चरित्रनायककी तरफ मुखातिब होकर कहा :- " मैं जानता हूँ, ये आपके गुरु हैं । आपको जरूर रंज होगा; मगर मैं भी इनका सेवक हूँ मुझे भी रंज होता है तो भी आपका तथा मेरा यह कर्तव्य है कि, हम इनका अन्त समय सुधरे वह काम करें । मेरी बातका विश्वास कीजिए कि ये आजकी रात न निकालेंगे । यदि रात निकल गई तो कोई खतरा नहीं है । ”
भाईजी महाराज इनकी बातें सुन रहे थे । वे बोले :- " वल्लभ ! सुखदयालजी और यतिजी ठीक कहते हैं । अब आखिरी समय आ पहुँचा है । मैंने मनमें संथारा ( अभिग्रह ) ले लिया है । तुम किसी तरहकी चिन्ता न करो। " फिर उन्होंने विधिपूर्वक, आलोचना, निंदा, देववंदन, गुरुवंदन आदि किया; तब - ' जइ मे हुज्ज पमाओ इमस्स देहस्स' इत्यादि और -' चचारि मंगलं' आदि पाठोच्चार द्वारा
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