________________
७६ .
आदर्श जीवन ।
आचार्यश्रीसे प्रार्थना की गई। आचार्यश्रीने श्रीचारित्रविजयजी महाराज आदि कुछ साधुओंको वहीं चौमासा करनेकी आज्ञाकर लुधियानाकी तरफ विहार किया। बड़े समारोहके साथ लुधियानाके श्रीसंघने आचार्यश्रीका नगर प्रवेश कराया। आचार्यश्रीने लुधियानाके श्रीसंघको उपदेशामृत पान कराकर निहाल किया । वहाँके श्रीसंघकी प्रार्थनाको स्वीकार कर आचार्यश्रीने मुनि श्रीउद्योतविजयजी महराज, मुनि श्रीसुंदरविजयजी महाराज आदि साधुओंको वहीं चौमासा करनेकी आज्ञा दी । . आपके बड़े गुरुभाई मुनि श्रीप्रेमविजयजी महाराज, किसी कारण वश, भाईजी महाराजके स्वर्गारोहणके पहिले ही, दिल्लीसे विहार कर पंजाबमें चले आये थे । यहाँ उनके साथ हमारे चरित्रनायककी भेट हुई। आपने अपने तीनों गुरु भाइयोंसे सलाह करके आचार्यश्रीसे अर्ज की कि, हम स्वर्गीय गुरुमहाराजके नामका एक ज्ञानभंडार यहाँ स्थापित कराना चाहते हैं । आचार्यश्रीने प्रसन्नतापूर्वक इजाजत दे दी । लुधियानेमें, 'श्रीहर्षविजयजी-ज्ञानभडारं । नामसे एक पुस्तकालय स्थापित हुआ जो पीछेसे आचार्यश्रीकी इच्छानुसार जंडियालागुरुमें पहुँचा दिया गया। __ आचार्यश्री लुधियानासे विहारकर मालेरकोटला पधारे । सं० १९४७ का चातुर्मास वहीं किया । हमारे चरित्रनायक का यह चौथा चौमासा था । यहाँ आपने कुछ न्यायका भी अभ्यास किया। अमरकोष समाप्त किया और अभिधान
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org