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आदर्श जीवन ।
गिरकर रोने लगे । आचार्यश्रीने आपको हाथ पकड़कर उठाया और धीरज बँधाया-"क्यों इतना दुखी होता है? जो भावी ज्ञानी महाराजने ज्ञानमें देखा था वह हो गया।" ___ आप बोले- अब आप मुझे कभी अपने चरणोंसे
दूर न करें।" ___आचार्यश्रीने प्यारसे पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा:
" चिन्ता न कर जैसा तू चाहेगा वैसा ही होगा।" ___ आचार्यश्री छावणीसे विहार कर अंबाला शहरमें पधारे ।। कई वर्षोंके बाद पुनरागमन होनेसे, पंजाबके सभी शहरोंके लोग आचार्यश्रीके दर्शनार्थ आने लगे। श्रीसूरिजी महाराजके साथ उस समय पन्द्रह साधु थे । ( १ ) श्रीकुमुदविजयजी महाराज (२) श्रीचारित्रविजयजी महाराज (३) श्रीकुशलविजयजी महाराज (४) श्रीहीरविजयजी महाराज (५) श्रीउद्योतविजयजी महाराज ( ६ ) श्रीसुमतिविजयजी महाराज (७)श्रीसुंदरविजयजी महाराज (८) श्रीअमरविजयीमहाराज (९) श्रीमाणिक विजयजी महाराज (१०) हमारे चरित्रनायक (११) श्रीलब्धिविजयजी महाराज (१२) श्रीशुभविजयजी महाराज (१३) श्रीमोतीविजयजी महाराज (१४) श्रीभक्तिविजयजी महाराज और (१५) श्रीरामविजयजी महाराज। - बाहरसे आनेवाले श्रावकोंकी दृष्टि हमारे चरित्रनायकी तरफ अवश्य आकर्षित होती थी। इसका कारण यह था.
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