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आदर्श जीवन।
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श्रीमोतीविजयजी और हमारे चरित्रनायक ) इस देशसे अजान हो और बच्चे हो; मगर मुनि श्रीकमलविजयजी यहीं चौमासा करनेका इरादा रखते हैं। ये बड़े हैं और इस देशसे. परिचित भी हैं इसलिए ये तुम्हारा खयाल रक्खेगें।" __ आचार्यश्रीके विहारके बाद श्रीहर्षविजयजी महाराजकी व्याधि बढ़ गई। श्रावकोंने हकीम महमूदखाँ का:-जो दिल्लीहीमें नहीं बल्के सारे हिन्दुस्थानमें प्रख्यात थे-इलाज कराना प्रारंभ किया। हकीमजीने बड़े परिश्रमके साथ इलाज और मुनिराजोंने तनदेहीसे सेवा, शुश्रूषा की; मगर आईका उपाय क्या ? जीवनके टूटे हुए धागेको कौन जोड़ सकता है ? हकीम, डॉक्टर, वैद्य, यंत्र, मंत्र, तंत्रादि कोई कुछ काम नहीं आता । भाईजी महाराजकी तबीअत बिगड़ती ही गई।
पालीमें श्रीहर्षविजयजी महाराजकी तबीअत एक. यतिजीके इलाजसे सुधर गई थी इसलिए श्रीसंघ दिल्लीने उन्हें बुलाया । यतिजीने उन्हें भली प्रकार देख भाल कर कहा:-" दवा और वैद्य साध्य रोगीके लिए उपयोगी होते हैं असाध्यके लिए नहीं । असाध्य वह होता है जिसकी जीवनडोरी सर्वथा जर जर हो जाती है। जिसका टिक रहना असंभव हो जाता है । मैं अपनी साठ बरसकी उम्रके अनुभवसे कह सकता हूँ कि, अब इनका इलाज करना मानों राखमें घी उँडेलना है।"
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