Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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ধান रूदित, गीत तथा हसितम, कुडयन्तरादिपु स्थितम्य मिक्षोः बीकृत-कनिवादि अवर्णामत्यर्थः, च-पुनः भुक्तासितानि भुक्तानि च आमितानि च-भुक्तासितानिगृहस्थावस्थाया स्त्रीभि. सहकृतानामुपभोगाना, ताभि. सईकासने समुपवेशनादीना च स्मरणम् । च-पुनः प्रणीत गलदु वृतरिन्दुक भक्तपानम तथाअतिमात्र मात्रामतिक्रम्य कृत पानभोजनम्, च-पुनः दष्टम्वीजनाभिलपित गाविभूषण शरीरविभूपकरणम, च-पुन.दुर्जयादुखेन जेया कामभोगा:तर-कामा शब्दरूपलक्षणा =भोगा'गन्धरसस्पर्शलक्षणा, आल्यमारभ्य नाम भोगपर्यन्ता एते सरें आत्मगवेषिण =चारित्रात्मगवेपरस्य नरम्य-सयतस्य कृते तालपुट-तालपुटनाम्ना परिद्ध खे निविष्ट सद करतल पनिकाल(कइय रूडय गीय हसियभुत्तासियाणिय-जितदित गीत हसित भुक्ता. सितानि च) कुडय आदि की ओट में छिपकर कृजित शब्द को, मदित शन्द को, गीतों को हँसीमजाक को सुनना एव गृहस्थावस्था में उनके साय किये गये भोगों का तथा एक आसनपर बैठने आदिका स्मरण करना ६ (पणीय भत्तपाण च अइमाय पाणभोयण-प्रणीत भक्तपान च अतिमान पानभोजनम् ) प्रणीत-सरस ७ तथा प्रमाण से अधिक पान भोजन करना ८॥१२॥ एव (इट-इष्टम् ) स्त्रियों के लिये इप्ट ऐसा (गत्त भूसणम्-गात्रविभ्रषणम् ) शरीर को विभूपित करना ९ यथा (दुज्जया भामभोगा-दुर्जया कामभोगा) दु.ख से जीतने योग्य काम-शब्द रूप पर भोग-गध, रस स्पर्श १० ये सब (अत्त गवेसिस्स नरस्स-आत्मगवेपिण नरस्य) आत्मा की गवेषणा करनेवाले मोक्षाभिलाषी के लीये (तालउड विस जहा-तालपुड विष यया) तालपुट नामक प्रसिद्ध विष कडय रुदय गोय हसीय भुत्तासियाणि य-ऋजित रदित गीत हसित भुक्तासितानि च કૃત શબ્દને, રૂદન શબ્દને ગીતાને હસી મજાકને સાભળવા (૫) અને ગૃહસ્થા શ્રમમાં એમની સાથે કરવામાં આવેલા ભેગોનું સ્મરણ કરવુ તથા એક આસન 64. मेस परेनु मरण उखु (.) पणीय भत्तपाण च अइमाय पाणभोयणप्रणीत भक्तपान, च अतिमात्र पानभोजनम् प्रणीत सरस मारापान (७) प्रभायथी १५ प्रमामा मार पाणीनुषु (८) उद्र-इष्टम् सीयाने भाटे सयु गत्तम सण-गात्रभूपणम् शश ने विभूषित ४२ (6) तामा भूम०४ ४४४ मेवा रस, २५शन, शम्, भने ५ (१०) २४ा सा अत्तगवेसिस्स नरस्स-आत्मवेपिण नरम्य भाभानी गवेष! ४२वावा भीक्षामिषी भाटे तालउड विस जहाતાત્રાટ વિષ નથી તાલપુટ નામના પ્રસિદ્ધ ઝહેર જેવા છે એટલે કે મોઢામાં