Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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| ওবায়ন
बामी स मञ्चलिताद् गृहात सारमाण्डानि-महामृल्यकाभरणादीनि निका सयति, तथा असार-नीर्णयाटियम् अपोयति-परित्यनति ॥२०॥
दृष्टान्तमुक्तमा दार्शन्तिस्माह-~मूलम्-एवं लोएं पलित्तमि, जराग मरणेणं ।।
अप्पोण तारडस्सामि, तु भेहिं अणुमन्निओ ॥२३॥ छायाएर लोक प्रदीप्ते, 'नरया मरणेन च ।
आत्मान तारयिपामि, युप्माभिरनुमतः ॥२३॥ एवम् उपर्युक्तदृष्टान्तव, जरया पाईन भरणेन मृत्युना च पदीप्तेप्रदीप्तः मञ्चलित इस मदीप्तस्तम्मिस्तया, अ यन्तण्याकुरीभृतेऽस्मिन् लोकेर ससारेऽहमपि युप्माभिरनुमना भाज्ञापित सन आत्मान तारयिष्यामि । लगजाने पर (तस्स गेहस्स जो पह-तस्य गेहस्य यः प्रभु.) उस घरका जो स्वामी होता है वह (सार भदाड नीणेइ-सारभाण्टानि निपासयति) महामूल्य वस्त्रादिक तथा आभरणादिक कीमती चीजोंको निकाल लेता है-- तथा (असार अवज्झर-असार अपोउमति) असार वस्तुओंका परित्याग कर देता है ॥ २२ ॥
अब इसी का दान्तिक कहते है--एव लोए' इत्यादि ।
अन्वयार्य--(पव-एव) इमी तरह (जराण मरणेण-जरया मरणेम) जरा एव मरण से लोए पलितमि-लोके प्रदीप्ते) यह सारा ससार जल रहा ह सो ऐसी स्थिति वाले इस लोक मे से (अप्पाण-आत्मानम्) मैं भी अपने आपको (तुम्भेहिं अणुमनिओ तारइस्सामि-युप्माभि अनुमतः तारयिष्यामि)आपके द्वारा आज्ञापित होकर बाहर निकाल लगा। छ त्यारे तस्स गेहस्स जो पह-तस्य गेहस्य यः प्रभु ये घरना थामी साय छत सारभडाइ नीग्रेड-सारभाण्डानि निष्कासयति धीमती पखा४ि तथा सासर माहिटीभती थीनन सौ प्रथम ढीछे तथा असार अवज्झइ-असार अपझिात અસાર વસ્તુઓને પરિત્યાગ કરી દે છે . ૨૨ છે
९३ मेनु हटाति छ-"एच लोए" इत्यादि।
सन्याय--एक-एवम् २१ त नराए मरणेणा-जरया मरणेन १२॥ मन भरधी लोए पलित्तमि-लोके प्रदीप्ते मा सघणे। मसार सी रह्यो छे, तो मेवी स्थितिवाणा भाई ५५ अप्पाग-प्रात्मानम भारी तने तुब्भेहि अणु मन्निो तारइस्सामि-युष्माभि अनुमत तारयिष्यामि मापनी आज्ञा भाता બહાર કાઢવા માગુ છુ