Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उत्तराध्ययनसो भगवान् यथा निEिT-- मूलम् जेइ मजम कारणा एए, हम्मति मुनह जिया ।
ने में" एंय तु निस्सेस,परलोए भविम्लेंड ॥१९॥ छाया--यदि मम शरणादत, या गुपयों जीराः ।
न मे एनच निःश्रेयस, पररीक मरिष्यति ॥१९॥ टीका-'जह' इत्यादि।
यदि एत मन्दिरता गुबहयः पाणिनो मम धारणाद हन्यते । तदा तु एतद हनन परलोके मोक्षगमने ममम नियसम्कल्याणकारक न भनि प्यति । हिंसया मोक्षो न भवतीति भाव ||१९||
___ एतेपा मागिना रन्धमोचनपुरम्मर रक्षणमेव श्रेयस्करमिति भगादभिप्राय मात्वा सारविना नाटकाना पजराणा न द्वाराणि समुद्घाटिनानि, तपा मृग मति-आदिक तीन ज्ञान सपन्न (से-म) उन नेमि प्रभुने (चिंतेड-चिन्त यति) विचार किया ॥१८॥
भगवान ने जो विचार किया मो बताते हैं-'जह' इत्यादि ।
अन्वयार्थ-यदि (मज्झ-मम) मेरे (कारणा-कारणात् ) निमित्त से (एए सुबह जीया-एते सुरहयो जीवा.) ये सन रोके गये जीव (हम्मतिहन्यन्ते) मारे जाते हैं तो (एय-एतद) यह हिंसा (मे-मे) मेरे लिये (परलोए निस्सेस न भविस्सइ-परलोले नि श्रेयस न भविष्यति) मोक्षगमन में कल्याणप्रद नही होगी अर्थान-हिंसा से मोक्ष नही होता है ।।१९।।
सारथिने जर यह देखा कि इन प्राणियो शवधन मोचन पूर्वक सरक्षण ही श्रेयस्कर है, ऐसा विचार प्रभुका है तो उसने प्रभु के इस ४ पान मा शमवावाणा तथा महापन्ने-महापज भयानि जानथी सपना से-स ते नभिप्रभुमे चिंतेइ-चिन्तयति वियार ४यो ॥१८॥
भगवान ने विया२ च्या ते तावे "जई" त्या!
अन्याय-ले मज्झमम भार कारणा-कारणात निमित्तथी एए सुबह जोया-एते सुबहवो जीवाः मा सघणा ५४ायला हम्मति-हन्यन्ते मा-पामा मावे छ त एय-एतत साहिसा मे मे भाभाटे परलोए निस्सेस न भविस्सइ -परलोके नियस न भविष्यति भोक्षगमनमा ५८या शे नही मयात् હિસાણા મેક્ષ થતું નથી ૧લા
સારધિએ જ્યારે એ જોયું કે, આ પ્રાણીને છોડી મૂકીને તેઓનું સ રક્ષ કરવું એ શ્રેયસ્કર છે એ પ્રભુને વિચાર છે તેમ સમજીને તેણે પ્રભુના એ વિચાર અનુસાર પાજ