Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 1092
________________ ९५८ - -- wp - उत्तरध्यायन उदितः। स निनभास्सरः मांगेचशिरमात्मक मनोजगात मागिनाम् उद्योत-मकाग करिष्यनि ॥७॥ केशीमुनि माह-- मूलम्साह गोयम पंण्णा ते. छिन्नो मे संसओ डमो । __ अन्नो वि"ससओम अंत में" कहेंसु गोयमा॥७९॥ छाया--माध गौतम ! पना ते, छिन्नो मे सगयोऽयम् । अन्योऽपि सशयो मम, त मे क्यय गौतम ! । ७९॥ टीका---'साहु गोयम !' इत्यादि--अस्या व्यारया पूर्वपद गो-या ॥७९॥ मूलम्सारीरमाणसे दुक्ख, वज्झमाणाण पार्णिण । खेम सिवमणावाह, ठाण कि' मन्नैसी सुणी ॥४०॥ छाया-शारीर मासैदु , पायमानाना प्राणिनाम् । क्षेम शिवमनाचाप, म्यान किं मन्यसे मुने' ॥८॥ टीका-'सारीरमाणसे' इत्यादि। हे मुने ! शारीरमानमै =शरीरमम्बन्धिभि. मन सम्बन्धिभिश्च दु खै भ्रमणरूप ससार नष्ट हो चुका है। ये सूर्य ही चौदह १४ राजुप्रमाण इस समस्त लोकवर्ती मागियो के अज्ञानाधार को नष्ट कर उनको उन्योत प्रदान करते हैं ॥७८!! ___गौतमस्वामी के इस कथन को सुनकर केशीश्रमण ने कहा 'साहु' इत्यादि। हे गौतम ! आपकी बुद्धि अच्छी है। आपने मेरा सशय दूर' कर दिया है परन्तु और भी मेरे को सशय है उमको आप दूर करें ॥७९॥ केशीश्रमण अपने सशय को कहते है--'सारीरमाणसे' इत्यादि। ___अन्वयार्थ-(मुणी-मुने) हे मुनिरोज ! (सारीरमाणसे दुक्खे वज्ममाणा સસાર નાશ પામેલ છે એ સૂર્ય જ ચૌદ રાજુ પ્રમાણ આ સઘળા લેકવતી પ્રાણી ચોના અજ્ઞાન અને અધિકારને નાશ કરી તમને અજવાળું આપે છે ! ૭૮ गौतमस्वामीना या प्रा२ना यनने सामजीन शी श्रभारी धु-"साहु" त्याह। હે ગૌતમ! આપની બુદ્ધિ સારી છે આપે મારા સ શયને દૂર કરેલ છે પરંતુ હજુ પણ મારા મનમાં એક સ શય છે તેને પણ આપ દૂર કરો Hલા शी श्रम पोताना से सशयन ४३ छ-" सारीरमाणसे" त्या ! अन्वयार्थ-मुणी-मुने उ भुनिया सारीरमाणसे दुक्खे वज्झमाणाण

Loading...

Page Navigation
1 ... 1090 1091 1092 1093 1094 1095 1096 1097 1098 1099 1100 1101 1102 1103 1104 1105 1106 1107 1108 1109 1110 1111 1112 1113 1114 1115 1116 1117 1118 1119 1120 1121 1122 1123 1124 1125 1126 1127 1128 1129 1130