Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उत्तराध्ययन ___उक्ता एपणासमिति., इदानीमादाननिक्षपणासामतिमा:--- मूलम्--ओहोवहाँवग्गहिय, भगं दुविह मुणी।
गिण्हतो निक्खियतो ये, पउजिन ईम विहिं ॥१३॥ छाया--ओपोपयोपग्रहिक, माण्डक विविध मुनिः ।
गृहन् निक्षिपश, मयुञ्जीत इम रिधिम् ॥१३॥ टीया--'ओहोयहोरगरिय' इत्यादि। - मुनि ओघोप यापनदिसम्भ धोपधिम् औपाधिकोपधि,तत्र-ओघोपरि नित्यनाथलक्षण सोररमुखवखितारजोहरणादियम्, श्रीपग्रहिका कारणग्राध
भण भाण्ड कम्-उपकरणम् एतद् द्विविध-द्विप्रकारसमुपनि गृहन्- प्राददान. निसिपन्-स्थापयश्च इमन्वक्ष्यमाण विधि प्रयुञ्जीत-कुर्यान् । 'आहोवहावग्गहिय' इत्यत्र उवहि' शदोमयनिर्दिष्टो 'टेडलीदीप न्यायेन' उभयत्रापि सर यते ॥१३॥
रिधिमेगाह-- मूलम्-चक्खुसा पडिलेहिता, पमनिज जय जई।
आइए निरिखवेज वा, दुहंओ वि समिए संया ॥१४॥ चउत्थ पायमेव य" चतुष्क पद से पिण्ड, शय्या, यन्त्र एप पात्र इन चारों का यहा ग्रहण इस कथन के अनुसार किया गया है ॥१२॥
आदाननिक्षेपण समिति का स्वरूप इस प्रकार है 'ओहोवहोवग्गहिय' इत्यादि।
अन्वयार्थ-(मुणी-मुनि) मुनि (ोहोवहोवग्गहीय-ओघोपन्यौपग्रहिक) श्रोघोपधि-नित्ययाधरूप सदोरकमुस्ववस्त्रिका रजोहरण आदि की तथा "औपग्रहिक" कारण ग्राह्यलक्षण (भंडग भाण्डपम्) उपकरण को (दुविहदुविहम् ) इन दोनों प्रकार की उपधि को (गिण्हतो-गृह्णन् ) उठाता हुआ तथा (निखिवतो-निक्षिपन) धरता हुआ (इम विहि पउजिज्ज-इम विधिम् प्रयुञ्जीत) इस नीचे कही जाने वाली विधि को काम मे लेवे ॥१३॥ ४२ "पिंड, सेज्ज च वत्थ च चउत्थ पायमेवय" यतु पथी (५७, शय्या, वस्त्र અને પાત્ર આ ચારેનું ગ્રહણ અહી આ કથનના અનુસાર કરવામા આવેલ છે ? माहान निक्षेप समितिनु २१३५ मा छ--"ओहो वही वग्गहिय"Urule
भन्याय-~-मुणी मुनिः मुनि ओहो वहोवग्गहिय-भोघोपध्यौपग्रहिक मोधोपाधानत्य ગ્રાહયરૂપ સરકમુખવસ્ત્રિકા રજોહરણ આદિને તથા ગૌશાહિ કારણ 5 ધ લક્ષણ भडग-भाण्डरम् ५५२४ने दविह-दविहम । मन्ने प्रा२नी हपधिने गिणतो गृहन् पाउता भने निविरववतो-निक्षिपन धा२९ ता इम विहिं पउजिन-इम विधिम् प्रयुञ्जीत मानीय वामा आवेत विधिन ममा ११३४