Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1120
________________ %3D - - - ९८४ उसगध्ययनसत्र नासिकाविनिर्गतम्, जल-शरोरमलम्, आटारमअशनाटिकम, उपधिम् उप फरणम्, देह-शरीरम्, अथवा अन्यदपि इतोऽनिरिक्तमपि तथाविध परिष्ठा पनाई यत्किचित्कारणतो गृहित भवत् तास न्यण्डिले युत्यजेदिति अग्रगान्वयः। 'सिंघाण' इत्यत्रात्वात् लुप्त द्वितीयान्तम् । 'जल्लिय' इति आपलान्निर्दिष्टम् ॥१५॥ . स्पण्डिल च दविशेषणपरिशिष्टमिति मनस्याधाय तद्गतालिमगोपर क्षणार्थमाविशेषणपदयोर्मद्गरचनामा: ।। मूलम्--अणावायमसलोए, अणावीए चेच होड सलोएँ। । आवायमसलो, आवाए चेवे सलाएं ॥१॥ छाया--अनापातमसलोरम, अनापात चैत्र भाति मगेकम् । आपातमसलोयम्, श्रापात चैर सरोषम् ॥ १६ ॥ टीका---'अणावाय' इत्यादि । अनापातम्-न विधते आपात. स्त्रपरोभयपक्षसमीपागमनरूपी यत्र तदना पात-स्थण्डिलम्, असलोकम्-नास्ति सलोको , दरस्थितस्यापि स्वपभपरपक्षा (खेल-लेप्माणम्) क-वेंगार (सिंघाग-सिह नागम् ) नाक का मेल (जल्लिय-जलम्) शरीर का मैल (आहार-आहारम्) भोजन आदि (उगाह. उपधिम् ) उपकरण (देव-देहम) शरीर (पा अन्न तहा विर अवि-वा अन्य अपि तथाविधम् ) अथवा और भी कोई पदार्थ जो परिष्ठापन के योग्य हो उस को परठना इसका नाम परिष्ठापन समिति है ॥१५॥ । कैसी भूमि मे परिष्ठापन करना इसके लिये सूत्रकार कहते, है-'अणावाय' इत्यादि-- अन्वयार्थ-जोभूमि (अणवायमसलोरा-अनापमसलोरम्) अनापाट एप असलोक हो अर्थात् जिस भूमि में अपने पक्ष के पर पक्षके नया उभयपक्ष के व्यक्तियो का समीप मे आगमनरूप आपात न हो तथा दूरस्थित श्लेश्माणम् ४३ सिंघाणम्-सिड्माणम् नाना भेद जल्लियम-जल्लम् शरीरने। भेद आहार-आहारम् न मा उवहि-उपधिम् ७५४२९५ देह-देहम् AN२ वा अन्न तहाविह अवि-वा अन्य अपि तथाविधम अथवा मी ४७ वस्तुमा परि બાપનના ગ્યા હોય તેને પરઠ એનું નામ પરિષ્ઠાન સમિતિ છે ૧૫ वी भूमिमा परि माने भाटे सूत्रा२ मताव छ--"अणावाय" त्याहि ! म-क्याथ:--२ भूमि अणावायमसलोए-अनापातमसलोकम् मनापात सन અસ લેક હેાય અર્થાત– જે ભૂમિમા પોતાના પક્ષના, બીજા પક્ષના તેમજ ઉભય પક્ષની વ્યકિતની નજીકમાં આગમન રૂપ આપાત ન હોય તથા દૂર હોવા છતા

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