Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उत्तराच्ययनसूध छाया--अनापाताऽसगोक, परम्यानुपातिक ।
समे अशुपिरे पाऽपि, चिरफारकते च ॥१॥ पिस्तीणे दागादे, नासन्ने पिलानिते ।
असमाणरोगरहिते, उन्चारादीनि व्युत्यजेत् ॥१७॥ टीका--'अणापाय' इत्यादि।
सयतः परस्य परपक्षादेः अनापातासलीके आगमनालोरपिवनिते, अ नुपातिके-स्वपरोपगतवनिते, समे-निम्नोन्नतत्परहिते ३, अशपिरे वापि-- वणपर्णादिभिरल्याप्ते, अचिरकालकृते चन्दादादिना मल्पकालमचित्ते कृते, चिर कालकृते हि पुन पृथिवीकायादयः सम्मृन्त्येव, विस्तीर्ण जघन्यतोऽपि हस्त प्रमाणे ६, दरमवगादे जघन्यतोऽप्यधस्ताच्चतुरील मचित्त ७, नासन्ने ग्रामो
भूमि के दस विशेषण कौन २ ह-इस बात को मूत्रकार कहते हैं-'अणावाय' इत्यादि। ____अन्वयार्थ जो भूमि (अणावायमसलोग-अनापातमसलोके) अनापात एक असलोक हो १, (परस्सऽणुवघाइए-परस्यानुपघातिके) स्व पर उपघात से रहित हो २, (समे-समे) समनीची ऊंची न हो ३, (अज्झु सिरे-अशुपिर) अशुपिर हो-तृण पर्ण आदि से व्याप्त होने से पोली न हो ४, (अचिरकालकयम्मि-अचिरकालकृते) अचिर कालकृत हो-दाहादिक द्वारा थोडे समय पहिले ही अचित्त की गई हो बहुत समय पहिले अचित्त होने पर पुनः वहाँ पृथिवी कायादिक जीव उत्पन्न हो जाते है ५ (वित्थिन्ने-विस्तीर्णे) विस्तीर्ण हो-कम से कम एक हाथ प्रमाण वाली हो ६, (दूरमोगाढे-दूरावगाढे) दूरावगाढ हो-कम से कम
भूमिना र विशेषण। या या छ १ मा वातने सूत्र४२ ४ छ- 'अगावाय' छत्यादि।
___ मन्वयार्थ ---अणायमसलोए-अनापातमसलोके २ भि मनायात मन असा हाय (१)परस्सऽणुवघाइए-परस्यानपघातिके पतथा ५२ना अपघातथा २र्शित खाय (२) यी नियी न डाय (3) अज्झसिरे-अशपिर मशुषि२ डाय तृय पाय माहियी यात पाथी पाली न डाय (४) अचिरकायफयम्मि-ओचर
ત્તેિ અચિરકાળકત હોય-દાહ આદિક દ્વારા થોડા સમય પહેલા જ અચેતન કરવામાં આવેલ હેય, ઘણુ સમય પહેલા અચિત્ત હોવાથી ફરીથ્રી ત્યાં પૃથ્વી કાલ.. माहि 9 4-1 Rs 14 छ (५) वित्थिन्ले-विस्तीर्ण वित्तीय माछामा माछा ४ साथ प्रभाशुपाणी होय (६) दरमोगाढे-दरावगाढे रागार
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