Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1130
________________ m 994 उत्तराध्ययन सम्प्रति मरकन समितिगुप्त्यो' परस्परविशेष म्पयमाह-- मूत्रम्-एयाओ पचे समिईओ, चरणस्स य पर्वतणे। गुंत्ती नियत्तणे वुत्ता, असुभत्थेसु य सव्वंसो // 26 // छाया--एता पञ्च समितयः, चरणस्य च प्राने। गुप्तयो निवर्तनेऽप्युक्ताः, अशुभार्थेभ्यश्च सर्वश // 26 // टीका--'एयाओ' इत्यादि / चरणस्य चारित्रस्य प्रवर्तने च-पारिपु प्रसृत्तावर एता पूर्वोक्ता प्राणातिपातविरमणात्य पञ्चसमितय उक्ता.। च-पुन: गुप्तय. सर्वश सर्वेभ्योऽ शुभार्थभ्य =अशुभमनोयोगादिभ्यो नितने निरत्तों, अपि शन्दात् चारित्र प्रवृतो च उक्ता.। 'अमुभत्येसु' इत्यत्र पश्चभ्यर्थ सप्तमी // 26 // अब सूत्रकार समितिऔर गुप्ति में परस्पर क्या भेद है सो दिग्वलाते है-याओ' इन्यादि / अन्वयार्थ-(चरणस्स पवतणे चारित्रस्य प्रवर्नने) चारित्र में प्रवत्ति करने परही( एयाओ-ता)पूर्वोक्त माणातिपातविरमण आदि पांच समतियों कही गई है। (सन्यसो असुमत्येसु नियत्तणे गुत्ती वुक्ता-सर्वश अशुभा थेभ्यश्च निवर्तने अपिगुप्नय उक्ता)तथा समस्त अशुभमनोयोगादिक से निवर्तन में "अपि" शब्द से चारित्र मे प्रत्ति करने में गुप्तियाँ कही गई हैं। भावार्य-समिति केवल प्रत्ति स्वरूप हैं और ये प्राणातिपात विरमणरूप हैं। तथा गुप्तियाँ प्रत्ति नित्ति उभयस्वरूप है // 26 // __ अर अध्ययन का उपसहार करते हए सत्रकार इनके आचरण હવે સૂત્રકાર સમિતિ અને ગુપ્તિમાં પરસ્પરમા કે ભેદ છે તે બતાવે છે --"एयाओ" त्या / सन्क्याथ:--चरणस्स पवत्तणे-चारित्रस्य प्रवर्तने यारित्रमा प्रवृत्ति 421 // उपरथी / एयाओ-एताः पूति प्रातिपात विरभा मा पाय समितिमा वामा पास छ, तथा सम्बसो असभत्थेस नियत्तणे गुत्ती वुत्ता-सर्वश अशु भार्थभ्यश्च निवर्नने अपि गुप्तय उक्ता सध्या अशुभ भनी यायिा नवनिमा “બ” શબ્દથી ચાવિત્રમાં પ્રવૃત્તિ કરવામા ગુપ્તિએ કહેવામાં આવેલ છે ભાવાર્થ-સમિતિ કેવળ પ્રવૃત્તિ સ્વરૂપ છે અને તે પ્રાણાતિપાત વિરમણ રૂપ છે તથા ગુગ્નિ પ્રવૃત્તિ-નિવૃત્તિ ઉભય સ્વરૂપ છે પરદા

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