Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1102
________________ - उनल्यायनर सम्मति ,ययनामनारन मामलगमन 11 ~~ मृलम्- केसी गोयमओ णिच, तम्मि आसि समागमे। सुयसील समुछ रिसो, महत्यस्यविणिच्छओ ॥८॥ छाया--फेशि गौतमता नित्य, तम्मिन्नासीन ममागगे । श्रुतगीलममुका, महार्थ पिनिय ॥८॥ टीका--'कमि गोयमओ' इत्यादि। तस्मिन् पुरे केशिगौतमयो. समागम-ममेलने केगि गौतमता शशि गीतमाभ्या तयोर म्यारषि नित्य अनशील समुत्कर्प-गुत-ज्ञान, गोलम्आचार. तयोः समुत्कर्पः-समुन्नति'-सानाचरणमरर्प, महाधिविनिश्चयःमहार्थी -मुक्ति साधरवेन महाप्रयोजनायेजर्षा =शिभात्रतादयस्तेपा विनिश्चयोनिर्णयश्च आसीत् अगन्, त्यो. शिष्यापेचपेट पोध्यम् ॥८८॥ तया-- मूलम्-तोसिया परिसा सव्वा, सम्मग्ग समुवटिया । सधैंया ते पसीयतु,भयंव केसी गोयमे-ति"चेमि" ॥८९॥ इद केसिगोयमिन अज्झयण समत्त ॥३॥ पहेले पार्श्वनाय के समय मे चातुर्यामरूप धर्म या आर अप अनिम तीर्थकर के इरा शासन काल म पचयाम रूप धर्म है। अत उन्हो ने भी इम पचयामरूप धर्म को अगीकार कर लिया ॥८६८७॥ . अरअध्ययन का उपसहार करते हरा केगीश्रमण और गौतम जैसे मरापुरुषो के समागम का फल करते है-'केसिगोयपजो इत्यादि। उस नगर मे केशिगौतन के इस समागम मे उन दोनो से श्रुत ज्ञान की एक शीलरूप आचार धर्म की खब उन्नति हुई तथा मोक्ष का साधनभृत शिक्षानत आदिरूप अर्थ का अच्छी तरह निर्णय हुआ ||८८॥ કે પહેલા જે પાર્શ્વનાથના સમયમાં ચાતુર્યામ ૩૫ ધર્મહતું અને હવે અતિમ તીર્થ કરના આ શાસનકાળમાં પાચયામ રૂપ ધર્મ છે આથી એમણે પણ પાયામ રૂપ ધર્મને આ ગીકાર કરી લીધે વા૮દાદા હવે અધ્યયનને ઉપસ હાર કરીને કેશીશ્રમણ અને ગૌતમ જેવા મહાપુરુષના समाजमना जनेउ छ-"केसिगोयमओ" त्यादि। - આ નગરમાં કેશી ગૌતમના આ સમાગમમાં એ બનેથી લતાજ્ઞાનની તથા શિલરૂપ આચાર ધર્મની ખૂબ ઉન્નતિ થઈ તથા મેક્ષના માધન ભૂત શિક્ષાબત દિર અક્ષા રાખી ને નિગય થ .

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