Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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সাগযন सम्पति भावयतनामेर सप्टयतिमूलम्-इदियत्थे विवजित्ता, सज्झाय चे पचही।
तम्मुत्ती तप्पुरकारे, सजए ईरिंय रिएं ॥८॥ छाया-इन्द्रियार्थान पिपर्य, स्वा पाय चा पञ्चधा ।
___ तन्मूर्तिस्तत्पुरस्कार', सयत यी रीयेत ॥८॥ टीका-'इदियत्थे' इत्यादि।
इन्द्रियार्थान् शब्दादीन, पिज्य तदनध्यसानत. परिहत्य, तथापञ्चधा-वाचनादि पञ्चप्रकार स्था याय, चैर-स्वाध्यायमपि, गत्युपयोगवाति स्वात् परिहत्य तन्मूर्ति:-तम्यामेर ईयांया व्यामियमाणा मृत्ति शरीर यस्य स तन्मूर्तिः, तथा-तत्पुरस्कार -तामेव पुरस्करोति-उपयुक्ततया प्राधान्येनागीकुरुते इति तत्पुरस्कार । अनेन फायमनसोस्तदेकाग्रत्वमुक्तम् । एवभूतः सन् सयत ईया रीयेत-विचरेत् । दशवोलान् वर्जयन गच्छेदिति भाव ॥८॥
उक्ता ईर्यासमितिः, अय भापासमितिमाहमूलम्-कोहे' माणे' य मायाए, लेाभे यं उपउत्तया ।
हाँसे भयमोहंरिए, विकहासु तहेवें ये ॥९॥
अथ इसी भाव यतना का स्पष्टीकरण करते हुए सूत्रकार कहते है-'इदियत्थे' इत्यादि।
अन्वयार्थ-(इदियत्थे पचही सज्झाय च विवजित्ता-इन्द्रियार्थान पचधा स्वाध्याय च विवर्य) इन्द्रियों के शब्दादिक पांच विषयों को तथा वाचना आदि भेद से पांच प्रकार के स्वाध्याय को इन दश बोलों को वर्जकर (तम्मुत्ती तप्पुरकारे तन्मूर्ति तत्पुरस्कार ) केवल गमन में ही व्यामियमाण शरीर वाला मुनि गमन में ही एकाग्रचित्त होकर (ईरिय रिए-ईयो रीयेत) ईर्या में विचरण करे ॥८॥
वे ये भावयतनानु २५४४२९५ ४रता सूत्रा२ ४ छ-"इदियत्थे" त्या ! __4-qयाय-इदियत्थे पचहा सज्ज्ञाय च विवजित्ता-इन्द्रियार्थान् पचा स्वा याय च विवर्य धन्द्रियाना APा पाय विषयाने तथा यायना माथी पाय ना स्यायने माय मोमोन 40 तम्मुत्तीतप्पुरकार-तन्मूर्ति तत्पु रस्सार ३११ अमनमा व्याप्रियभाणु शरीरका गमनमान्यायिनी ईरिय रिए-ईर्या रीयेत श्याथी वि२ ४३ ॥८॥