Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रियदर्शिनी टोका अ २३ श्रीपार्श्वनाथचरितनिरूपणम्
छाया - तोषिता परिपत्सर्वा सन्मार्ग समुपस्थिता ।
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सतुतौ तौ प्रसीदता, भगवन्ता केशिगातमाविति प्रीमि ॥८९॥ टीना- 'तोसिया' इत्यादि ।
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सदेवासुरमानुषा सर्वा परिपत् तोषिता = सन्तृष्टा जाता । सा परिषत् सन्म = मुक्तिमार्ग पति समुपस्थिता = उद्यता = साधाना जाता । इत्थ तच्चरितवर्णनद्वारा तयो स्तुतिमुक्त्वा तत्मसादाकाङ्क्षी सुनार माह- 'सया' इत्यादिना - इत्य सम्नुतौ=तत्तचरितवर्णनत कुनस्तुती तौ भगवन्तौ केशीगौतमी अस्मासु ममी दताम् = प्रसन्नौ भवताम् । 'इतिब्रवीमि' इत्यस्यार्थः पूर्ववद् वोय | 'भयव' इत्यत्रात्यादेकत्व वोध्यम् ॥ ८९ ॥
इतिश्री - विश्वविरयात- जगद्वलभ - मसिद्धवाचक- पञ्चदशभापाकलितललितालापा लपक-परिशुद्धगद्यपद्यनैकग्रन्थनिर्मापक - नादिमानमर्दक- शाहपति - कोल्हा पुर- राजमदत्त - 'जैनशास्त्राचार्य' पदभृषित - कोल्हापुरराजगुरु - बालब्रह्मचारि - जैनाचार्य - जैनधर्मदेवर - पूज्यश्री घासीलालयतिविरचितायामुत्तरा ययनमुत्रस्य प्रियदर्शिन्याख्याया व्याख्याया केशिगौतमीय नाम त्रयोविंशतितममन्ययन सम्पूर्णम् |२३||
तथा - 'तोसिया' इत्यादि ।
अन्वयार्य- --इस प्रकार देव असुर एव मनुष्यो से भरी हुई वह (सच्या परिसा तोसिया - सर्वा परिषत् तो पिता ) समस्त सभा नडी ही सतुष्ट हुई। उनके उपदेश श्रवण से सब के सब (सम्मग्ग समुवट्टिया - सन्मार्ग समुपस्थिता.) मुक्तिमार्ग की और चलने के लिये सावधान वन गये। इस तरह चारित्र वर्णन द्वारा (सयुया ते केसी गोयमे पसीयतु तिमि स्तुतौ तौ केशीगौतमौ प्रसिदता इतिव्रवीमि ) स्तुत हुए वे
तथा “तोसिया" त्याहि ।
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अन्वयार्थ–या प्रमाणे द्वेष, असुर, भने मनुष्याथी भरेसी मे सव्वा परिसा तोसिया - सर्वा परिपत्तोपिता समस्त भला धर्षी ४ सतोष यामी सेभना उपदेश श्रवणुथी सघणा सम्मग्ग समुट्टिया - सन्मार्ग समुपस्थिताः ચાલવા માટે સાવધાન બની ગયા या प्रभाहो यरित्र केसी गोयमे पसीयतु तिवेमि-सम्तुतौ तौ केशी गौतमौ
भुम्ति भार्गनी तर वर्षान द्वारा सयुया ते प्रसीदता इति व्रत्रीमि
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