Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रियदर्शिनी टीका म २३ श्रीपार्थनाथचरितनिरूपणम्
गोतम पाह-- मूलम्भ वतण्हा लँया वुत्ता, भीमा भीमफलोदया।
तमुहितु जहानाय, विहरामि महामुणी ॥४८॥ छाया-भवतृष्णा लता उक्ता, भीमा भीमफलोदया।
तामुद्धृत्य यथान्याय, विरामि महामुने ! ॥४८॥ टीका-'भवतण्हा' इत्यादि--
हे महामुने! भवतप्णा-भ-मसारे या तृष्णागेमा, सा, लता उत्ता। एपा भवतृष्णारूपा लता भीमा-स्वरूपतो भयपटा, तथा-भीमफलोदया-भीमादुःखहेतुत्वेन भयङ्करः फलाना-हिटरमणामुढयो-विपाको यस्याः सा तथा, नरकनिगोदादिदु खहेतुभूता चास्ति । एवविधा ता लताम् उद्धृत्य-उत्पाटय यथा न्यायंगास्त्रोक्तमार्गानुसारेणाह विहरामि-अप्रतिवद्ध विहारितया विचरामि॥४८॥ तु-केशीमेव त्रुपत तु) केशी श्रमण के इस प्रकार पूछने पर (गोयमो इणममन्नवी-गौतमो इदमब्रवीत् ) गौतमस्वामी इसप्रकार कहते है ॥४७॥
गौतमस्वामीने क्या कहा सो कहते है-'भवतण्हा' इत्यादि।
अन्वयार्थ-(महामुणी-महामुने) हे महामुने! (भवतण्हा लया चुत्ता -भवतृष्णा लता उक्ता)वह लता भव तृष्णा स्वरूप है-अर्थात् ससार में जो लोभ है वही एक लता है। यह भववष्णा रूप लता स्वरूपत. (भीमा भीमफलोदया-भीमा भीमफलोदया) भय को देने वाली है, तथा दु.खों के हेतु होने से भयकर किष्ट कर्मों का उदयरूप है जिससे ऐसी है। तथा नरकनिगोदादिक दुःखों की हेतुभूत है। (तमुद्धितु-तामुद्धत्य) मै ने उस लता को उखाड दिया है। इसी लिये (विहरामि-विहरोमि) शास्त्राक्तमार्ग के अनुसार मै अप्रतिबद्ध होकर विहार करता हूँ ॥४८॥
शी श्रमाना मा ना ५७पाथी गोयमो इणमब्बवी-गौतमो इदमब्रवीत ગૌતમસ્વામી આ પ્રમાણે કહે છે પાછા
गौतम स्वामी शु ४खु तर ४९ छ-'भवतण्हा" त्यादि। मनपयार्थ:--महामुणी-महामुने महामुनि ! भवतण्हा लया तुत्ता-भवतष्णा
એ લતા ભવતૃષ્ણા સ્વરૂપ છે અર્થાત-સ સારમાં જે લેભ છે તે એક सताछे से सपतृ ३५ सता मरीशत तो भीमा भीमफलोदया-भीमा भीम
સૌરાઇ ભયને આપનારી છે તથા ૮ ના હેતુરૂપ હેવાથી ભય કર કલેશ ઉપજાવનાર કર્મના ઉદયરૂપ છે તથા નરક નિગાદિક દુ બની હેતભૂત છે तमुद्धित्तु-तामद्धत्य मे ते ताने मेडी नामी छ मा ४२ शात्रोत भाग मनुसार अतिम वर्धन विहरामि-विहरामि विडार ४३ ७ ॥४८॥ ૧૧૮