Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रियदरिना टीका अ. ०३ श्रीपार्श्वनाथचरितनिरूप गम
पुन का प्रार--- मृल्म्-सहि गोयम! पंपणा ते, छिन्नों मे' ससंओ इमों ।
अन्नो वि"संसओ मज्झ, त“मे' कहसु गोयँमा ॥५९॥ छाया--साधु गौतम ! प्रज्ञा ते, छिन्नो मे सशयोऽयम् ।
अन्योऽसि मशयो मम, त मे स्थय गौतम ! ॥५९|| टोका-'माह गोयम " इत्यादि । व्यारया पूर्ववत् ॥१९॥ मूलम् कुप्पहा बहवो लोएं, जेहि नासंति जतुणो।
अडाणे केह वहतो, ते ने नस्ससि गोयमा। ॥६॥ डाया--कुपग रहयो लोके यनश्यन्ति जन्ता ।।
____अवनि कय वर्तमान , व न नश्यसि गौतम ॥६०॥ टी--कुप्पहा' इत्यादि ।
हे गौतम ! लोकेजगति बहवः अनेके कुपया'-उन्मार्गा सन्ति । यै' कुपथै जन्तवः पाणिन' सन्मार्गात नश्यन्ति भ्रष्टा भवन्ति । हे गौतम । वर्ती नालिया है। अतः यह मेरे द्वारा चलाये गये मार्ग पर ही चलता है। कुमार्ग पर नही ॥१८॥
फिर केशी श्रमण कहते हैं-'साहु' इत्यादि । गौतम स्वामी द्वारा प्रतिपादित अश्व का वर्णन सुनकर केशी ने उनकी धुद्धि की यहत ही अधिक सराहना की है तथा और भी प्रश्न पूछते है।।५९॥
केशीश्रमण गौतम से पूरते हे--'कुप्पहा' इत्यादि ।
अन्वयार्थ हे महाभाग ' (लोग कुप्पहा रहबो-लोक कुपथा घरव.) इस मसार में अनेक कुपप है। (जेहिं जतुणो नासति- जन्तव' नश्यति) વશવતી બનાવી લીધેલ છે આથી એ મારા તરફથી જે માગે ચલાવવામાં આવે એજ માર્ગ ઉપર ચાલે છે કુમાર્ગ ઉપર જ નથી ૫૮
शथी शी श्रव ३ - 'साह" या
ગૌતમસ્વામી તરફથી કહેવામા આવેલ અવની તારીફ સાભળીને શી શ્રમણે એનની બુદ્ધિના ખૂબ જ વખાણ કર્યા તથા બીજે પણ પ્રશ્ન પૂછવાની Go मतावी ॥५॥
अशी श्रमायु गौतमने पूछ छ - "कुप्पहा " त्याहा
मन्वयार्थ-डे महा । लोए कुप्पहा वहवी-लोके-कुपथा बहवः । स सारमा भने हु५५ , जेहिं जतुणो नासति-यै जन्तवः नश्यन्ति सेना
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