Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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छाया- प्रानयोः, विशेपे मिनु पारणम् ।
धर्मे हिदि मेघारिन ! कर रिमत्ययो न त ? ||२४|| टाका--'गाज' इत्यादि।
हे गौतम ! एककार्यमपन्नया-गया-मासफलस्पसमानार्य तत्र प्रपन्नयो.-मरत्नया पार्शमानयो निगप-धर्मस्याचरणव्ययम्मायाश्च भेद मि नु कारणम्-को हेन ? हे मेधापिन ! हे विशिष्टधारणाशक्तिसमन्धित ! महाभाग अस्मिन् द्विविधर्मे पातुर्यामपक्रयामलमणे द्विप्रकार के धर्मे ते-तब मित्ययःसशय. कथ न भरति ? तल्ये सनित्त मिकतोऽसी भेद' ? इत्यभिप्रायः ॥२४॥
केशीश्रमण ने गौतमम्बामी से जो पूटा मो करते है-'चाउन्नामो' इत्यादि।
अन्वयार्थ-दम गाया की न्याग्या बारहवी गाथा की तरह समझ ले अर्थात् (जो धम्मो चाउनामो-यो पर्मो चातुर्यामश्च) चारमहाव्रतरूप मुनिधर्म (वद्रमाणेण पासेण य-वर्षमानेन पार्येन च) श्रीपार्वनाथस्वामी ने (देमिओ-देशित) कहा और पाच महाप्रतरूप मुनि वर्म श्री वर्धमान स्वामी ने का है सो इन दोनों के भेद में क्या कारण है ॥
'गरजप्पयन्नाण' इत्यादि। __ अन्वयायें-केशिकुमारश्रमण ने गौतम से यह भी पृठा कि महावीर प्रभु तथा पार्श्वप्रभु पा(माजप्पान्नाग-एस्कार्यप्रपत्नयो.) एकरूप मोक्षकार्य मे समानरूप से प्रवृत्त है तो फिर (विसेसे किं नु कारणम्-विशेपे किंतु फारणम्) धर्म के जाचरण करने की न्यवस्था में इस भेद का क्या कारण है? (मेहावी-मेधाविन ) हे श्रेष्ठधुद्विमान (दुविहे धम्मे ते विप्पचओ कह नडिविधे धर्मे ते विप्रत्ययो क्यान) क्या आप को इस चातुर्याम तथा पचया शी श्रभरे गौतम १ भान ले ५ यु नेने ४हेछ-"चाउज्जामो" छत्या |
અન્વયા-- ગાથાની વ્યાખ્યા બારમી ગાથાની માફક સમજી લેવી અર્થાત जो धम्मो चाउज्जामो-यो धर्मश्चातुर्यामश्च या२ महानत३५ मुनियम वद्धमाणेण पासेण य-वर्द्धमानेन पार्श्वन च श्री यनाथ स्वामी देसिओ-देशित. हा छ અને પાંચ મહાવ્રતરૂપી મુનિધર્મ શ્રી વર્ધમાન સ્વામીએ કહ્યા છે તે આ બન્નેના કહેવાના ભેદનું કારણ શુ છે ૨a
"एगाजपवन्नाण" इत्यादि।
અવયાર્થ–-કેશીકુમાર શ્રમણે ગૌતમસ્વામીને એ પણ પૂછયું કે, જ્યારે महावी प्रभु तथा पाच प्रभु एककन्जप्पबन्नाण-एककार्यप्रपन्नयो भाक्ष३५ अयमा समान३५थी प्रवृत्त छ । पछी विसेसे किं नु कारणम् विशेषे किनु कारणम् धनु माय२९५ ४२वानी व्यवस्थामा मापा लेनु शुजार छ ? मेहावी-मेधाविन श्रेष्ठ भुद्धि भान् दुविहे धम्मे ते विपञ्चयो कह न-द्विविधे धर्मे ते विमत्ययो क्थ न? शु मापने