Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उत्तगययनमत्र किन्नराः समागता । यक्षादयस्खयाऽपि व्यन्तरदेश निषा । तथा तत्र उद्यान थदृश्याना-चक्षुपोऽपियाणा भूताना यन्तरविशेषाणाच समागम आसीत् ॥२०॥
सम्मति तयो परम्परसभापणमा:मृलम्-पुच्छामि ते महाभाग , केसी गोयममबंधी।
तओ के सि वुवत तु, गोयमो उगमव्यवी ॥२१॥ छाया-पृच्छामि ते महाभाग !, शी गौतममनमीद ।
तत. केशिन प्रान्त तु. गौतम इदमनमीत् ॥२१॥ टीका--'पुनामि' इत्यादि।
हे महाभाग ! गौतम ! तेन्या पृयामि' इत्य केशीमुनिगौतम गण घरमब्रवीत् । तत उत्थ त्रुवन्त-पृन्छन्त केशिन तु गौतम इद-वक्ष्यमाणमब्रवीत्॥२१॥
गौतमो यथाह-तदुच्यतेमूलम्-पुछे भते'। जहेच्छ ते, केसिंगोयममव्यवी ।
तओं केसी अणुण्णाए, गोयम इणमव्वैवी ॥२२॥ व्यन्तरदेवविशेप आये तथा (जम्परकरसकिन्नरा-यक्षराक्षसरिन्नरा) यक्ष, राक्षस, पिन्नर तथा (अदिस्साण य-अद्रश्याना च) अदृश्य आर भी व्यन्तर देव के भेदरूप भूत देवका (समागमो आसी-समागम आमीत) समागम वा ॥२०॥
अब इन दोनों का सभापण करते है 'पुच्छामि' इत्यादि। .
अन्वयार्थ--(महाभाग-महाभाग) हे महाभाग गौतम ' मै (त पुच्छामि-ते-पृच्छामि) आप से पूछता हु" जय इस प्रकार (केशी गोय ममब्यवी केशी गौतममब्रवीत्) केशीश्रमण ने गौतम से कहा (तओं युवत केसिं गोयमो इणमव्यवी-तत त्रुवत केशिन गौतम इदमब्रवीत्। तर गौतमस्वामी ने केशिश्रमणसे इस प्रकार कहा ॥२१॥ तथा जकावरकखसकिन्नरा-यक्षराक्षसकिन्नरा. यक्ष, राक्षस, CIR तथा कि म्साण य-अदृश्याना च पश्य मी पण यन्तरविना ले३५ वना समागा आसि-समागम आसीत समागम यो ॥२०॥
हवे से गन्नेना समापने ४९ छ-"पुच्छामि" त्या
सन्वयार्थ----महाभाग-महाभाग है मामा भीतमा ते पुच्छामि-ते पृच्छामि मापने छु छु" न्यारे मा प्रशारे केसी गोयममब्बवी के शी गौतममब्रवीत् शी श्रम गौतमने यु तभो बुवत केसि गोग्रमो इणमबत्री-तत ब्रुवत केशिन गौतम इदमब्रवीत् त्यारे गौतमेशा अपने सारे ४ो ॥२॥