Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उत्तराध्ययनस्थ चि --- मा--अहं भवे" पाण्णा , मोरखसमयसाहणे।
नाण च दर्सणं चैव, चरित चे निच्छये ॥३३॥ चाया-~~-अथ भाति प्रतिमा तु, मोक्षसभूतसाधनम् ।
ज्ञान च दर्शन चैत्र, चारित्र र निश्चये ॥३३॥ टीका-'अ' इत्यादि।
"प्रय दो पिगेपार्थधोतर । त रिशेपार्थमेगाह-हे भदन्त ! निश्चये निश्चयनये गान च, दर्शन चा, चारित्र चैत्रज्ञानानचारित्राणि मोक्षसद्भूत यापनम्-मोक्षस्य सद्भनयास्तविक साधन-कारणम् , अम्ति. इति प्रतिज्ञाअनिशान प्रनि-अभ्युपगम सिद्धान्त इति यारद् भवति तुम्भवत्य-अस्त्येव पापमानतीर्थदरो । अय भाव'-निश्चयनयेत ज्ञानदर्शनचारित्राण्येच मोससा धनम् । तन नास्ति लिङ्ग प्रत्यार । अयते हि-भरतादीना.लिङ्ग विनाऽपि केवलोत्पत्तिरिति । अतोऽनये लिङ्गमकिचित्तरमेवेति भगवतोः पार्श्वर्द्धमान
फिर भी--'अह' इत्यादि । - ___ अन्ययार्थ--है भदन्त ! (निक-निश्चये) निश्चयनय की अपेक्षा ले (नाण च दसण चेव चरित्त चेव-जान च दर्शन चैव चारित चैव) ज्ञान, दर्शन एव चारित्र यही (मोरस सम्भूय साणे-मोक्षसद्भुतसाधनम) मोक्ष का वास्तविक साधन है। इस प्रकार का (पइण्णा भवे-प्रतिज्ञा भवति) सिद्वान्त दोनों तीर्थंकरों का है। तात्पर्य इस का यह है कि निश्चयनय के अनुसार जब मोक्ष के वोस्तविक साधन का विचार किया जाता है तो सम्यग्दछान, सम्यरज्ञान एव सम्यक्चारित्र की एकता ही मोक्ष की एक वास्तविक अराध हेतु है। इसमे लिग के प्रति आ ह नही है। करों कि शास्त्रो मे ऐसी नई क्याएँ है-जैसे भरतचक्रवर्ती को मुनिलिङ्ग छ। ५~~"अहत्याह!
महन्त निन्च्ये-निश्चये निश्चय नयनी -५ पेक्षाथी नाण च दसण चेर चारित्र चेर-ज्ञान च दर्शन चैव चारित्र चैव ज्ञान शन भने यानि मे । मोकावमभूयसाहणे-मोलसदभूतसाधनम् मोक्ष तlqx साधन छ । मारने पदण्णा भवे-प्रतिज्ञा भवति सिद्धात गन्न तीन -तपय मानु એ છે કે નિશ્ચયનયના અનુસાર જ્યારે મોક્ષના વાસ્તિવિક સાધનને વિચાર કરવામાં આવે છે તે સમ્યગદર્શન, સમ્યગજ્ઞાન અને સમ્યફ ચારિત્રની એકતાજ મેશનું એક