Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
९११
Raymanna
BR
प्रियदर्शिनी टीका अ २३ श्रीपायनायचरितनिरूपणम्
इत्य गौतमेनोक्ते केशी पाहमूलम्साह गोयंम । पण्णा ते. छिन्नो मे संसयो इमों।
अन्नों वि"ससओ मैज्झ, त" में कहसु गोयमा। ॥२८॥ छाया-साधुगातम ! प्रज्ञा ते, छिन्नो मे सगयोऽयम ।
अन्योऽपि सशयो मम, त मे कथय गौतम ! ॥२८॥ टीका-'साई' इत्यादि।
हे गौतम ! तेन्तर मना-द्विः साधु' शोभनाऽस्ति । मे-मम अय समयस्त्वया छिन्न' । अन्योऽपि मम सशयोऽम्ति । हे गौतम | त मे कथयतम्योत्तर मा देहि । केशिन इयमुक्ति. शिप्यापेक्षया विजेया। अम्मिन समये ज्ञानत्रयान्वितस्य तम्येटगसगयासम्भवात् ॥२८॥ मूलम्-अचेलगो यं जो धम्मों, जो इमों सतरुत्तरो।
देसिओ वडमाणेणं, पासेणं ये महाजेसा ॥२९॥ इस प्रकार जन गौतमस्वामी ने कहा तर केशीकुमार श्रमण ने उनसे कहा-'सार' इत्यादि।
अन्वयार्थ--(गोयम-गौतम) हे गौतम !(ते पण्णा-ते प्रजाः) आपकी बुद्धि बहुत ही (सार-साधु)अच्छी है । (मे इमो सगयो लिन्नो-मे अयम् सगयो छिन्नो) आपने मेरे सशय को दूर कर दिया है। (मज्झ अन्नो वि ससओमम अन्योऽपि सगयो) मुझे और भी सशय है। (त मे कहलु गोयमात मे कथय गौतम) अतः आप उनको भी दूर करें। इस प्रकार का यह केशी अमण का कथन शिप्यों की अपेक्षा जानना चाहिये। कारण कि केशी अमण स्वम ज्ञानत्रय से युक्त येअतः उनको ऐसे सशयों का होना असभव है ॥२८॥
આ પ્રમાણે જ્યારે ગૌતમસ્વામીએ કહ્યું ત્યારે કેશીકુમાર શમણે તેમને यु-"साह"त्यादि !
मन्या4--गोयम-गोतम 3 गौतम! ते पण्णा-ते प्रज्ञा मापनी मुद्धि घjी साहु-साधु सारी छ मे इमो ससयो छिन्नो-मे अयम् सशयो लिन्नो मापे भा२। मास शयने २ ४0 बीघा छ मज्म अन्नोवि ससओ-मम अन्योऽपि सगयो भने जीने ५५] म शय छ माथी त कहसु गोयमा-तम् कथय गौतम આપ એને પણ દૂર કરો આ પ્રકારનું કેશી બમણુનું ૮થન શબૅની અપેક્ષાઓ જાણવા જોઈએ કારણ કે, કેશી શ્રમણ પતે જ્ઞાનમયથી યુકત હતા આથી તેમને એવે આશય થે અસભવ છે પ૨૮