Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रियदर्शिनी टीका ग २३ श्रीपार्श्वनायचतिनिम्पणम्
या-पृच्छ भदन्त ! यथेच्छ ते, कगिन गातमोऽत्रवीत् । . तत केशी अनुनात , गीतमम् इदमत्रवोत् ॥२२॥
टीका-पुन्छ' इत्यादि। . 'हे भदन्त ! ते-तब यत्पृष्टव्य भवेत् , तत् यथेच्छ मा पृन्छ' इत्थ भगवान् गौतम के गिन मुनिम् अब्रवीत् । ततस्त्य गौतमेनानुनात अनुमोदित वेशी भगान्त गौतमम् इद वध्यमाणमनवीद-पृष्टवान । द्वितीयचरणे 'गोयम' दत्यनापत्वात प्रथमास्थाने द्वितीया । २२॥
सम्प्रति केजीमुनिर्गौतम यत पृष्टवास्तदुच्यते-- मूलम्चाउँनामो यं जो' धम्मों, जो इमों पचसिक्खिओ।
देसिओ बद्धमाणेण, पासेण ये महामुणी ॥२३॥ छाया-चातुर्यामश्च यो पाँ, योऽय पञ्चशिक्षित।
देशिता बर्द्धमानेन, पार्थेन च महामुनिना ॥२३॥ टोमा--'चाउन्नामो' इत्यादि ।
हे गौतम ! यस्या व्यारया द्वादशगाथापद् गोध्या ॥२३॥ मूलम्--एगकज पवन्नाण, विसेसे कि नु कारण ।
धम्मे दुविहे मेहावी । कह विप्पचओ ने ते ॥२४॥ गौतमस्वामीने जो कहा सो कहते है-'पुच्छ मते' इत्यादि।
अन्वयार्थ--गौतमस्वामी कहते है कि-(भते-भदन्त) हे भदन्त ! केशीश्रमण ! (ते जहेच्छ पुच्छ-ते यथेच्छ पृ) जो आपको पूछना हो वह आप ययेन्छ पूनें। इस प्रकार (गोयम केमि अब्धवी-गौतमो केशिन अब्रवीत् ) जर गौतमम्वामी ने कशिश्रमण से कहा (तो केसी अणुण्णाएततः केशी अनुज्ञात) तर केशिश्रमण ने गौतम स्वामी से अनुमोदित -प्रेरित होता हवा (गोयम इणमब्रवी-गौतमम् इद मत्रवीत) गौतम स्वामी को इस प्रकारकहा--॥२२॥
गौतम स्वाभाये रे यु तेने हे छ -"पुन्छ भने" त्याlel
अन्वयार्थ -गीतमस्वाभीम यु, भते-भदन्त मन्त। शीश्रम। ते जहेच्छ पुच्छ-ते यथेच्छ पृच्छ धुवानी -२छ0 4 ते मुशीथी पूछ। मा प्रकारे गोयम केसिं अबवी-गौतमो केगिन अब्रवीत् गौतमस्वाभाये न्यारे अशी श्रमाने ४यु तओ केसी अणुण्णाए-तन केगी अनुज्ञात त्यारे अशी अमरे
तमस्वामीथी अनुमाहित न प्रेरित थ गोयम इणमव्ववी-गौतम उद अत्र વીર ગૌતમસ્વામીને આ પ્રકારે પૂછ્યું કે ૧૧૪