Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रियांशो टापा ... नेमिनायचरिननिरूपणम
७८० शिशिरत्न समारूढो देवमनुष्यपरित्तो भगवान अरिष्टनेमि मात द्वारकापुर्या निकम्य=निर्गत्य क्रमेण तपतपर्वते समागत्य स्थित ॥२२॥ मरम्-उज्जोण सपत्तो. ओडण्णो उत्तिमांओ सीाओ।
साहस्सीड परिवुडो अभिनिखमई उ चित्ताहि ॥२३॥ छाया - उद्यान सम्मत', अवतीर्ण उनमाया मिविकायाः।
साहम्म्याः परिटन , अभिनिष्किामति तु चित्राम ||२३|| टीरा--"उन्नाण" इत्यादि
नदन भगवानरिष्टनेमि' तकपर्वतस्य उधान-सहाम्ररणनाममुद्यान मम्पाप्त समागत तर उत्तमाया उत्कृष्टतमाया गिविकातोऽवतीर्णः तु-पुनः
'देवमणुस्म परिवुटो' इत्यादि।
अन्वयार्थ--(तो तत) जव चतुर्विधनिकाय के देव आकर उपस्थित हुए उसके पाद (सीयारयण समाख्दो-शिविकारत्न ममारूढ) देवा द्वारा निर्मित उत्तरकुम नामक रेष्ठ पालग्बी में विगजकर (देव मगुस्सपरिपुडो-देवननुप्यपरिटतः) देव एव मनुष्यों से परिटत हर (भर-भगवान्) भगवान् अरिष्टनेमि (वारगाओ निरग्वमिय-द्वारकात' निष्कम्य) द्वारकापुरी से निकलार (रेवयम्मि ठिओ-चतके स्थितः) क्रमशः रैवतक पर्वत पर पधारे ॥२॥ 'उजाण' इत्यादि।
अन्वयार्थ--उसके बाद वे (उन्माण मपत्तो-उन्यान सम्प्राप्त ) रैवतक पर्वत के सहस्राम्र नामके उद्यान में पहुँचे। यहा पर (उत्तिमामो मीयायो ओइण्णे-उत्तमायाः गिरिफाया अवतीर्ण) उस सर्वो
"देवमणुस्स परिधुडो" त्य!
भ-या-तो-तत न्यारे यारे नियाना व आपीन १२ गया यारपछी सीयारयण समारढो-शिविसारत्न ममारूढ वासन.. २९ उत्त२ १३ नभनी श्रेष्ट पारी भीन दरमणुम्स परिवुडो-देवमनुष्यपरिवृत १५ भने मनुष्याथा घेराया सेवा भयव-भगरान् समपान अस्टिनेमि वारगाभो निकग्वमिय द्वारकात' निष्क्रम्य द्वा२४ाधुरीया नीणीने यासता यासता रेवयनि ठिओ-रेवत के स्थित त पत 6५२ पयार्या ॥२॥
"उज्जाण" Sell
मन्वयार्थ - पछी तेयो उजाण सपत्तो-उधान सम्पाप्त २१त ४ ५६ ना समान नाभना धानमा पहाय्या त्या पायाने उत्तमाओ सीआओ ओडपणे