Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रियदशिना टीका अ २३ श्रीपार्श्वनाथचरितनिरूपणम्
८२९ तौ केभिगोतमो शिप्यशङ्कानिवारणार्थ समागमे सम्मिलननिम्ति कृमती कृतनिश्चयो जाती ॥१४॥ ___ ततश्च क कस्य म्याने गन्तीत्याह-~~ मृलम्-गोयंमो पडिरूंवण्णू , सीससघसंमाउले।
जिंह कुलमविक्खतो तिहुँअ वर्णमागओ ॥१५॥ छाया--गतिम' प्रतिरूपज्ञ , शिप्यसरसमाकुल' ।
ज्येष्ठ कुटमपंधमाण , तिन्दुर वनमागतः ॥१५॥ टीका--'गोयमो' इत्यादि ।
प्रनिरूपा -प्रतिरूप-यथोचित शास्त्रोक्तविनय जानातीति तया, स भगरान गौतमो भगवतः पार्थस्य सन्तानम् ज्येष्ठ-भाग्भावित्वेन ज्येष्ठ कुल अपेठमाण = मन्यमान.-समानयन्नित्य । शिष्यसयममाकुठ शिष्यसमुदायपरिहत मन तिन्दुक बनम्-तिन्दुस्मुद्यानम् आगत प्राप्तः ||१५|| केशिगौतमौ) उन दोनों केगिकुमार और गौतमने (मीमाण पवियकिय विन्नाय-शिप्याणा प्रवितर्वित विकाय) शिप्यो के इस पृक्त देह को जानकर (समागमे कयमई-समागमे कृतमती) परस्पर मे मिलने का पिचार निश्चित किया ॥१४॥ .
मौन पिस के स्थानपर जावे सो कहते:--'गोयमो' इत्यादि।
अन्वयार्थ-(पडिस्वण्णू गोयमो प्रतिरूपज गौतम) यथोचित शास्त्रोक्त विनय के ज्ञाता गौतम स्वामी (जिट्ट कुलमविग्यतो-ज्येष्ठ कुल अपेक्षमाण) केशिकुमार को ज्येष्ठ बालवाले मानकर (सीससपसमा उलो-शिष्यसघसमाकुल') शिष्यसमूह को साथ लेकर (तिंदुअ वणमागओ-तिन्दुक बन आगत ) तिन्दुक वनमे आये ॥१५॥ शिशुमार भने गौतमे सिसाण पवियकिय विणाय-शिष्याणा प्रतिकित विज्ञाय शिष्याना मा पूर्वात मदेखने लाने समागमे कयमई-समागमे कृतवती ५२-५२मा મળવાને વિચાર કર્યો ૧૪
जोय होना स्थान ५ गय ते सगे ४ छ-"गोयमो" त्यादि।
मन्वयार्थ-पडिरूवष्णू गोयमो-प्रतिरूपज्ञ• गौतम ५थायित थानोना निन या साता गौतम पाभी जिह कुलमरिक्खतो-ज्येप्ट कुलमपेक्षमाण' शीभारने भोटा पुणवाा मानीन सीससघसमाउले-शिष्यसपसमाकुल शियाने साये લઈને તિન્દુકાનમાં આવ્યા ૧પ