Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उत्तराध्ययनसो टीका-'मणपरिणामो य" इत्यादि
भगवता निप्क्रमण प्रति मन.परिणाम'मनसोऽभिप्राय कात। तदा भगवत निष्क्रमण प्रत्युधत स्वासनकम्मताऽवधिज्ञानेन परिताय तम्य भगवती ऽरिष्टनेमेः निष्क्रमण-दीक्षामहोत्सव कर्तुं सर्वदम्प कारया महया युक्ता सपर्पदम्प स्वपरिवारपरिटताः देवाः चतुर्विधा देवान यथोचितक्रमेण सम वतीर्णाः समागताः । 'जे' इति निपात• पादपूतों ॥२१॥ मूलम् देवमणुस्सैंपरिखुडो, सीयारयण तओ समोरुढो।
निक्खमिय वारगाओ, रेवर्ययम्मि ठिओ भयव ॥२२॥ आया-देवमनुष्यपरिश्त शिविकारत्न तत. समास्ट ।
निग्क्रम्य द्वारमातो, रैवतके स्थितो भगवान ॥२२॥ टीका-'देवमणुस्सपरिवुडो इत्यादि--
तत चतुर्विधदेवागमनानन्तरम् शिविकारत्न-सुरनिर्मिनमुत्तरकुरुनामक ग्रहण किया यही यात सूत्रकार प्रदर्शित करते है__ 'मणपरिणामो' इत्यादि। __ अन्वयार्थ-भगवान् नेमिकुमारने निष्क्रमण के प्रति (मणपरिणामो य कओ-मनः परिणामश्च कृत.) मानसिक परिणाम किया उस समय अपने २ आसनों के कम्पित होने से अवधिजान द्वारा भगवान को निष्क्रमण के प्रति उद्यत हुए जानकर (तस्म निरग्वमण काउजे-तस्य निष्क्रमण कर्नु) उनका दीक्षामहोत्सव करने के लिये (देवाय जहाइय सब्बड्डीए सपरिसा समोइण्णा-देवाश्च यथोचित सर्वद्वर्था सपर्पद समवतीणी) समस्त ऋद्वियों से एव अपने परिवार से युक्त होकर चारों निकायों के देव क्रमश आकर उपस्थित हो गये ॥२१॥ सूत्र प्रशित ४२ छ ---"मणपरिणामो" त्या !
मक्या:--सपान नमिभारे निभाना त२६ मणपरिणामो य कथामनपरिणामश्च कृत मानसि परिणाम यु मा समये पातपाताना मासना કપિત થવાથી અવધિજ્ઞાન દ્વારા ભગવાનને નિષ્ક્રમણના તરફ ઉદ્યત થયેલા જાણીને तस्स निकग्वमण काउजे-तस्य नष्क्रमण गर्नु भनी दीक्षाभत्स रवाने भारे देवाय जहोइय सम्बडोए सपरिसा समोइण्णा-देवाश्च यथोचित सर्वद्धयां सपर्पद समवतीर्णा सपणी दिया साथ भर पातपाताना परिवारकी युत બનીને ચારે નિકાના દેવ એક પછી એક આવીને હાજર થઈ ગયા ૨૧
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