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________________ ७८० Maa उत्तराध्ययनसो टीका-'मणपरिणामो य" इत्यादि भगवता निप्क्रमण प्रति मन.परिणाम'मनसोऽभिप्राय कात। तदा भगवत निष्क्रमण प्रत्युधत स्वासनकम्मताऽवधिज्ञानेन परिताय तम्य भगवती ऽरिष्टनेमेः निष्क्रमण-दीक्षामहोत्सव कर्तुं सर्वदम्प कारया महया युक्ता सपर्पदम्प स्वपरिवारपरिटताः देवाः चतुर्विधा देवान यथोचितक्रमेण सम वतीर्णाः समागताः । 'जे' इति निपात• पादपूतों ॥२१॥ मूलम् देवमणुस्सैंपरिखुडो, सीयारयण तओ समोरुढो। निक्खमिय वारगाओ, रेवर्ययम्मि ठिओ भयव ॥२२॥ आया-देवमनुष्यपरिश्त शिविकारत्न तत. समास्ट । निग्क्रम्य द्वारमातो, रैवतके स्थितो भगवान ॥२२॥ टीका-'देवमणुस्सपरिवुडो इत्यादि-- तत चतुर्विधदेवागमनानन्तरम् शिविकारत्न-सुरनिर्मिनमुत्तरकुरुनामक ग्रहण किया यही यात सूत्रकार प्रदर्शित करते है__ 'मणपरिणामो' इत्यादि। __ अन्वयार्थ-भगवान् नेमिकुमारने निष्क्रमण के प्रति (मणपरिणामो य कओ-मनः परिणामश्च कृत.) मानसिक परिणाम किया उस समय अपने २ आसनों के कम्पित होने से अवधिजान द्वारा भगवान को निष्क्रमण के प्रति उद्यत हुए जानकर (तस्म निरग्वमण काउजे-तस्य निष्क्रमण कर्नु) उनका दीक्षामहोत्सव करने के लिये (देवाय जहाइय सब्बड्डीए सपरिसा समोइण्णा-देवाश्च यथोचित सर्वद्वर्था सपर्पद समवतीणी) समस्त ऋद्वियों से एव अपने परिवार से युक्त होकर चारों निकायों के देव क्रमश आकर उपस्थित हो गये ॥२१॥ सूत्र प्रशित ४२ छ ---"मणपरिणामो" त्या ! मक्या:--सपान नमिभारे निभाना त२६ मणपरिणामो य कथामनपरिणामश्च कृत मानसि परिणाम यु मा समये पातपाताना मासना કપિત થવાથી અવધિજ્ઞાન દ્વારા ભગવાનને નિષ્ક્રમણના તરફ ઉદ્યત થયેલા જાણીને तस्स निकग्वमण काउजे-तस्य नष्क्रमण गर्नु भनी दीक्षाभत्स रवाने भारे देवाय जहोइय सम्बडोए सपरिसा समोइण्णा-देवाश्च यथोचित सर्वद्धयां सपर्पद समवतीर्णा सपणी दिया साथ भर पातपाताना परिवारकी युत બનીને ચારે નિકાના દેવ એક પછી એક આવીને હાજર થઈ ગયા ૨૧ HTHHTHHATH
SR No.009354
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1130
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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