Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रियदर्दा नी टीका अ २० नेमिनाथरिननिरूपणम् छाया-सा मजाजता सती, प्रावाजयत्तत्र बहुम् ।
बजन परिजन चैत्र, शीलवती माता ||३२|| टीमा--'मा पन्यडया' इत्यादि।
मनजिता सतो-मत्रज्याग्रगान नर गीलवती-मृलोत्तरगुणयुक्ता बहुश्रुता अपीतमाहोपात्रा सा राजीमती मा की तर-द्वारकाया बहु स्वजन%3 भगिन्याग्विर्ग परिजन परयादिवर्ग चैत्र मात्राजयन् दीक्षामग्राहयत् ! राजीमती भगिन्यादीना मायादीना व मप्तगती प्रामाजयतिति-सप्रदाय ||३२||
अथ तदनन्तर वक्तव्यतामाहमूठम्--गिरि चे रेवय जती, वासेणोला उ अतरा ।
वासते अधयारम्मि, अंतो लयणस्स सा ठियों ॥३३॥ छाया-गिरिं च रैवता यान्ति, चर्पणाही तु अन्तरा । न वर्पति अन्धकारे, अन्तलंयनग्य सा स्थिता ।'३३॥ टीका--'गिरि च' इत्यादि। च=पुनरन्यदा भगररिएनेमि वन्दनाथ रैवतक गिरि यान्नीगन्छन्ती फिर राजीमतीने क्या पिया' सो कहते हैं-'सो' इत्यादि ।
अन्वयार्य-(पचड या मती-प्राजिता मती) दीक्षित होकर मुलो त्तर गुणों के परिपालन करने में अतिशय सावधान एव (बहुस्मुयायह श्रुता) उपांगसहित साल अगो के अभ्यास से विशिष्टज्ञान सपन्न (सा-सा) उस माध्वी राजीमतीने (तहि-तर) द्वारिका मे (पहु सयण परियण चेव-बहु स्वजन परिजन चैव) अपनी दहिनो आदिको को गव सावजनो को (पव्यावेसी-पापाजयत्) दीक्षाग्रहण परवाई। इन समी मल्या सानसी ७०० थी ॥३२॥
पछी मती गु यु ? माने --"सो" त्याह। ____सया--पयडया सनी-मत्रजिता सती क्षा ने भुत शुशानु परि पालन ४२वामा अतिशय सावधान मने पहुस्मृया-बहुश्रुता. सखित सा म गानु अयासयी विशिष्ट ज्ञान प्राप्त ४.न २ सा-सा थे.
स मतामे तहि-तत्र द्वारा बहु सयण परियण चेव-बहु स्वजन परिजन चैव पोतानी मने। तमा अन्य समानाने पवावेसी-प्रात्राजयत् हीमा पार ४२६१ २नी सय સાતને હ૦ની હતી ૩રા